‘बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ’ नारे का जीवंत उदाहरण बनी यह डाक्टर

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लखनऊ– बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के स्लोगन को रोज हम सब देखते और सुनते है परंतु मरती हुई अनाथ बेटी को जीवन दान दिया चंद्र प्रभा अस्पताल ने ।

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शराब और बीमारी के कारण अपने माता पिता को खोकर गांव से सब्जी तोड़कर, तो कभी दूसरों की मजदूरी करके अपना गुजारा करने वाले चार भाई बहनों में एक रश्मि प्राथमिक विद्यालय अलीनगर खुर्द सरोजनी नगर की छात्रा है बच्चों का पेट किसी तरह  भर रहा था। लेकिन मुसीबतें अभी खत्म नहीं हुई। कक्षा 3 में पढ़ने वाली आकन्शी उर्फ रश्मि एक दिन खेत में गोभी तोड़ने गई थी। उसी दौरान एक जहरीले कीड़े ने उसे काट लिया। गांव में गंदगी में रहते वह घाव का रूप लेने लगा । घाव में नीम हकीम की दवा ने आग में घी का काम किया और पैरों में इतनी सड़न पैदा हो गई की उसका पैर काटने का नौबत आ गई और जहरीले कीड़े का असर उसके स्वास्थ्य को खत्म कर रहा था  ।

विद्यालय के शिक्षकों को जब जानकरी हुई  तो उन्होंने तुरंत संज्ञान में लेते हुए रश्मि को उसके फूफा के यहां से बुलवा कर कई अस्पतालों में दिखाया। परंतु स्थिति इतनी खराब हो गई थी कि सिविल और  टी एस .मिश्रा अस्पताल ने भी पैर कटने से बचाने में अक्षमता  जताई । लाल अस्पताल आलमबाग के डाक्टर संतोष श्रीवास्तव ने पहल करते हुए बच्ची का दवा और ड्रेसिंग फ्री में करने का आश्वासन दिया और निःशुल्क  इलाज शुरू किया।यह प्रक्रिया लगभग एक सप्ताह  तक चलती रही।

प्राथमिक विद्यालय सरैया के अध्यापिका सुमन दुबे  ने अपनी कोशिशों से चंद्रप्रभा हॉस्पिटल की डॉ.मिथिलेश सिंह को इस पूरी घटना की  जानकारी दी, क्योंकि बच्ची  अनाथ है उसका खर्च उठाने वाला कोई नहीं है। फूफा के पास अस्पताल आने जाने का किराया भी नहीं ,  इस कारण डॉक्टर मिथिलेश सिंह ने उसका पूरा इलाज अपने हॉस्पिटल से करने का आश्वासन दिया और  वही एडमिट करके खाने पीने से लेकर पूरी  इलाज की प्रक्रिया शुरु कर दी।पूर्ण रूप से लगभग दो माह के इलाज और सेवा भाव का असर हुआ और बच्ची अब दोनों पैरों के साथ चलने के काबिल हो पाई है । स्कूल की शिक्षिका रीना त्रिपाठी का अकेले शुरू किए कारवा में साथी जुड़ते गए और रश्मि को मौत के मुँह से खींचकर ले आये। इस सफर में डाक्टर मिथिलेश सिंह(चंद्र प्रभा अस्पताल ) , डा. चौहान सर्जन एनेस्थिटिक , डा. नितिन मंडल M.Sआर्थो , डा. त्रिभव गोयल  M.S.अर्थों , प्राथमिक विद्यालय अलीनागर खुर्द की शिक्षिका  आभा शुक्ला , नशीम सेहर , सरिता , प्राथमिक विद्यालय सरैया के शिक्षक रवींद्र , सुमन दुबे , प्र.वि .ऐन की शिक्षिका गीता , प्र.वि हसन खेड़ा के अनिल सिंह तथा बाल चौपाल   संस्था के  अनूप मिश्रा जी का सहयोग अविस्मरणीय रहा। एक बेटी जीवन और मौत की जंग जीतकर  फिर शिक्षा पाने हेतु अपने दोनों पैरों से तैयार हो पाई ।

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