सोशल मीडिया कितनी सोशल, जानिए वर्चुअल वर्ल्ड का कितना है प्रभाव

वर्चुअल वर्ल्ड का कितना प्रभाव है इस 21वीं सदी में? इसकी कल्पना मात्र इससे ही की जा सकती है कि आजकल चुनाव भी सोशल मीडिया पर ही लड़े जाने लगे हैं।

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वर्चुअल वर्ल्ड का कितना प्रभाव है इस 21वीं सदी में? इसकी कल्पना मात्र इससे ही की जा सकती है कि आजकल चुनाव भी सोशल मीडिया पर ही लड़े जाने लगे हैं। सोशल मीडिया पर प्रचार करना या किसी के खिलाफ दुष्प्रचार करना बेहद ही आसान काम है और इसको करने में मात्र कुछ सौ के नेट का रिचार्ज और कुछ घण्टे लगते हैं। वैसे भी हमारे देश की आबादी की तुलना में बेरोजगारी बहुत ज्यादे है तो बिना तथ्य जाने किसी भी सकारात्मकता को बढ़ावा देने के बजाय नकारात्मकता को सोशल मीडिया पर बढ़ावा देने के लिए युवा तैयार बैठे ही हैं।

किसी फिल्म का डायलॉग है कि भारत में जबतक सिनेमा रहेगा यहां के लोग……बनते रहेंगे। उस फिल्मी डायलॉग का उपयोग वर्तमान परिपेक्ष में भी किया जा सकता है कि भारत में जबतक सोशल मीडिया रहेगा मासूम एवं नादान लोग छले जाते रहेंगे। इस वर्चुअल वर्ल्ड ने हमें ऑनलाइन तो मित्र दे दिया लेकिन इसने हमारे वास्तविक मित्रों को ऑफलाइन भी कर दिया। अब किसी के पास ना तो पिताजी के पास बैठकर बात करने की फुरसत है और न की किसी के पास पड़ोसी के घर में हो रहे आयोजन में मदद करने की फुरसत।

भारत में सिनेमा ने आने के बाद शर्म-हया तो कम की ही थी लेकिन इस सोशल मीडिया ने तो इतना त्राहिमान मचाया है कि उसे देखकर शर्म शब्द भी शर्मा जाए। यहां लोग फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम पर अपने वाल पर बहुतेरों लोग अपने मन का लिखने से पहले यह सोचते हैं कि कहीं इससे मेरा स्टेट्स कम ना हो जाए। बहुत लोग उम्र में अपने से बड़ों के साथ इस सोशल मीडिया पर अनसोशल हो जाते हैं और उनको सम्मान देना तो दूर उनसे कभी-कभार ऐसा बर्ताव कर देते हैं जैसे वही उम्र में बड़े व्यक्ति भारत की इस स्थिति के जिम्मेदार हैं।

मेरे एक मित्र हुआ करते थे, थे का मतलब यह है कि वह तो हैं लेकिन अब मित्र नहीं रहे क्योंकि सोशल मीडिया के वर्चुअल वर्ल्ड और रियल वर्ल्ड में वह बैलेन्सिंग नहीं कर पाये, सोशल मीडिया पर बड़े आदमी तो हो गए लेकिन मेरे मित्र ना रह पाये। वह हमेशा मेरे सामने एक गाना गुनगुनाया करते थे कि “भौकाल बनल ह त बनईले रहा”। इस गाने के गायक वही हैं जिन्होने कभी प्याज की महंगाई पर भी गाना गाया था और संयोग से वर्तमान समय में सांसद भी हैं। आजकल की युवा पीढ़ी इस गाने का सर्वाधिक अनुसरण करते मेरे उस पूर्व मित्र के तर्ज़ पर सोशल मीडिया पर दिख जाएगी।

“ सोशल मीडिया के वर्चुअल वर्ल्ड में आज जरूरत है अपनी प्रोफाइल को लेकर असुरक्षा की भावना को खत्म करने की, सोशल मीडिया पर अपने फर्जी रूप से बचने की। भोजपुरी में एक कहावत प्रचलित है कि ‘ईंटा रख के उंच ना बनल जाला’, यही स्थिति वर्तमान समय में सोशल मीडिया की है यहां लोग खुद को ताकतवर प्रदर्शित करना चाहते हैं। ”

सोशल मीडिया पर लोग खुद की आर्टिफिसियल इमेज क्रिएट करना चाहते हैं और सोशल दिखने का प्रयास करते हैं लेकिन वह कितने सोशल हैं, यह बात उनके घर तथा गली मुहल्ले के लोग ही जानते हैं। सोशल मीडिया पर अच्छे लोग भी संपर्क में आते हैं लेकिन उनका प्रतिशत बेहद ही कम है।

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सोशल मीडिया पर कई बार हम किसी बात तो लेकर आपसी संबंध खराब कर लेते हैं, कई बार हम बेमतलब की चीजों के लिए वर्षों पुराने सम्बन्धों की बलि चढ़ा देते हैं जबकि इससे बचने की जरूरत है।

2015 में मैं इंजीनियरिंग ग्रेजुएट होने के बाद बेरोजगार था तो एक इसी सोशल मीडिया के जरिए परिचित मेरे पड़ोसी जिले गाजीपुर के एक तत्कालीन अधिकारी ने बातचीत के क्रम में कहा कि अपना रिज्यूम भेजिए, फलां कम्पनी में आपकी नौकरी लगवा देते हैं। मैंने कुछ देर सोचने के बाद उनको अपना बायोडाटा भेज दिया। ख़ैर, नौकरी तो आजतक नहीं लगी लेकिन उक्त सज्जन ने स्क्रीनशॉट लेकर कई लोगों को भेजकर इस तरह प्रदर्शित करने का प्रयास किया था जैसे उन्होंने मुझे ‘अमेरिका का राष्ट्रपति’ बनवाने के लिए प्रयास किया था।

इसी सोशल मीडिया के मित्रों के लिए मैंने बहुत पैरवी भी की तथा करवाई, बहुतों का काम उनके साथ भी जाकर कराया। बहुतों के परिजनों को लेकर कई रात अस्पताल मे भी रहा और तो और कईयों के पारिवारिक कार्यक्रमों को अटेण्ड करने के चक्कर में अपने परीक्षा हाल में परीक्षा शुरू होने से मात्र चंद मिनट पहले पहुंचा। लेकिन, मेरा अच्छा नसीब कहिए कि सोशल मीडिया के तथाकथित मेरे मित्रों ने अपना काम हो जाने के बाद कभी रिवर्ट कॉल बैक तक नहीं किया।

लेकिन इसी सोशल मीडिया पर मुझे बहुत अच्छे लोग भी मिले फिर भी मैं अपने अनुभवों के आधार पर यह बात कह सकता हूं कि अगर कभी आपको किसी प्रकार की मदद की आवश्यकता होती है तो आपके परिवार के लोग, रिश्तेदार तथा कुछ करीबी मित्र ही खड़े नजर आते हैं। इसलिए जरूरत है सोशल मीडिया से ज्यादा खुद को और अपनों को अपना समय देने एवं अपने परिवार के उन बुजुर्गों के साथ बैठकर कुछ सीखने की जिन्होंने जिन्दगी के हर रंग को देखा है।

(दिव्येन्दु राय)
स्वतन्त्र टिप्पणीकार

 

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