एक ऐसा प्रत्याशी जो हारने के लिए लड़ता है चुनाव, अब तक 93 बार लड़ चुका है चुनाव

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लोकतंत्र में हर व्यक्ति को चुनाव लड़ने की आजादी है, इसी अधिकार के तहत एक सख्श पंचायत चुनाव से लेकर राष्ट्रपति चुनाव तक 93 बार मैदान में उतर चुका है. हार की हसरत लिए आगरा में यह प्रत्याशी हर बार पर्चा भरता है और हर बार हारता है. लेकिन उसे संविधान ने जो अधिकार दिए हैं उस पर उसे गर्व है. आगरा के हसनूराम आंबेडकरी ने 95वीं बार चुनाव लड़ने के लिए एक बार फिर से नामांकन पत्र खरीदा है.

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बता दें कि आगरा के खैरागढ़ इलाके के नगला दूल्हे खां के रहने वाले हसनूरम आंबेड़करी की भले ही उम्र आज 75 साल हो चुकी है, लेकिन चुनाव लड़ने का जोश और जुनून ऐसा है कि लड़खड़ाते कदमों के साथ वह एक बार फिर से नामांकन पत्र खरीदने कलेक्ट्रेट में पहुंचे गए. इस बार वो एक नहीं दो-दो विधानसभाओं से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं. उन्होंने आगरा जिले की खेरागढ़ और आगरा ग्रामीण विधानसभा सीट से अपना नामांकन पत्र दाखिल किया है.

हसनूराम

तो ये है चुनाव लड़ने की असली वजह

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गौरतलब है कि पंचायत चुनाव से लेकर राष्ट्रपति तक हर चुनाव हसनूराम आंबेडकरी लड़ चुके हैं और हर बार उनकी हार हुई है. लेकिन वो हार में भी अपनी जीत देखते हैं. हसनूराम आंबेडकरी की चुनाव लड़ने की शुरुआत कैसे हुई, इस पर उनका कहना है कि खेरागढ़ तहसील में संग्रह अमीन था. साल 1985 का दौर रहा होगा, मैं बामसेफ का पदाधिकारी था, मैं चुनाव लड़ना चाहता था लेकिन किसी ने कहा कि तुम्हें तो तुम्हारी पत्नी भी वोट नहीं देंगी. बस यही बात दिल को चुभ गई और सिलसिला शुरू हो गया चुनाव लड़ने का.

हसनूराम आंबेडकरी का जन्म 15 अगस्त 1947 को हुआ था, यानी जिस दिन देश आजाद हुआ था. हसनूराम ने बताया कि वह राजस्व विभाग में अमीन के पद पर कार्यरत थे. उस समय वह वामसेफ में सक्रिय थे. साल 1985 में उन्हें एक क्षेत्रीय दल की ओर से विधानसभा चुनाव लड़ाने का भरोसा दिया गया.उनसे कहा कि वो अपनी नौकरी छोड़कर चुनाव की तैयारी करें.आश्वासन पर उन्होंने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया, मगर चुनाव के समय पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया. हसनूराम ने बताया कि यह बात उनको चुभ गई। उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ने की ठान ली.

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