जिस पीपल के पेड़ पर हजारों को दी गई थी फांसी, वो बना शिक्षा का मंदिर

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फर्रुखाबाद–शहर के मोहल्ला नई बस्ती में अंग्रेजी शासन काल मे कोर्ट हुआ करता था।जिसमे जिले से लेकर अन्य जनपदों के क्रांतिकारियों को फाँसी की सजा सुनाने के बाद कोर्ट के खड़े पीपल के पेड़ पर लटकाकर उनको मौत की नींद सुला दिया जाता था।

अंग्रेजी हुकूमत के समय इस कोर्ट में किसी प्रकार से दया की उम्मीद नही की जाती थी।जिस समय देश की आजादी के जिले के क्रांतिकारी अग्रेजो के खिलाफ हर मोड़ पर उनको लोहा मनवा रहे थे।वही अंग्रेजी पुलिस अपने पैसो की बदौलत गरीबो से क्रांतिकारियों को पकड़ने के लिए पैसों के बदले जानकारी हासिल करते थे लेकिन जो देश भक्त हुआ करते थे वह पैसा लेने बाद भी अग्रेजो को मारने में क्रांतिकारियों की मदद किया करते थे।जब यह जानकारी अंग्रेजी हुकूमत को हो जाती थी तो वह उन लोगो को पकड़कर फांसी पर लटका दिया करते थे।करीब सौ साल पहले इस कोर्ट के कैम्पस में खड़े पीपल के पेड़ में एक साथ हजारो क्रांतिकारियों को फाँसी पर लटका दिया गया था।

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आज वह पीपल का पेड़ सूख गया उसके साथ ही साथ काफी पुराना होने की वजह से बीच से टूट गया है।केवल उसकी जड़ ही बची है।वह इस अंग्रेजी कोर्ट में भारत सरकार ने उसमे सरकारी स्कूल खोल दिया है।जिस इमारत में देश भक्तो को सजा सुनाई जाती थी आज इस आजाद देश मे उसमे छात्र बैठ कर शिक्षा प्राप्त कर रहे है।भारत सरकार हो उत्तर प्रदेश सरकार ने उस इमारत का रंग नही बदला बैसा ही बना हुआ है।लेकिन सरकारी स्कूल के शिक्षकों से जब बात करने की कोशिश की गई तो उन्होंने इस कॉलेज के इतिहास के बारे में बताने से बना कर दिया।जब शिक्षक ही इस आजादी की गवाह इमारत के बारे में नही जानते तो छात्रों को क्या बताते होंगे।उन्हें सिर्फ इतना पता है कि यह राजकीय इंटर कालेज है उसके अलाबा कुछ नही है।यदि इसी प्रकार लोग देश के लिए मर मिटने वाले लोगो युवा पीढ़ी भूलती चली जायेगी।

रविन्द्र कुमार भदौरिया का कहना है कि आज के समय मे कोई युबा अपने इतिहास को जानने की कोशिश नही करता है।दूसरी तरफ बहुत कम स्थान है जिनको सरकार ने अपने काम मे लिया हो। सुरेन्द्र पांडेय ने बताया कि हम लोग अपनी धरोहर को अपने आप खत्म करने में लगे हुए है किसी को देश की चिंता नही अपनी दिखाई देती है। अनुराग पांडेय ने बताया की युबा पीढ़ी को वर्तमान समय मे अपनी आजादी के जो स्थान है उनको बताना पड़ेगा क्योकि स्कूलों में केवल पढाई होती है।हर प्रकार से जानकारी नही दी जाती है।

(रिपोर्ट-दिलीप कटियार, फर्रूखाबाद)

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