पुश्तैनी फूलों की खेती को लगा लॉकडाउन का ग्रहण

बंदी और मंदी ने फूल के खेतिहरों को किया बेजार.

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फतेहपुर जनपद के मलवां और देवमई विकासखंड के गांवों में 1 हजार हेक्टेयर में फूलों की खेती किसान अरसे से करते चले आ रहे हैं। लॉकडाउन की बंदी व मंदी ने फूल की खेती करने वाले किसानों को बेजार बना दिया है ।

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कोविड-19 गाइडलाइन के तहत मंदिरों में धार्मिक कार्यक्रमों में प्रतिबंध, शादी समारोह में न्यूनतम व्यवस्था, धार्मिक उत्सव बंद होने पर फूल की मांग को ग्रहण लग गया। ऐसे में किसानों ने फूलों को तोड़ना मुनासिब नहीं समझा । फूल की फसल खेत में खड़े नष्ट हो गई है।कश्मीर की वादियों की सी आहट गंगा और पांडु नदी के मध्य कटरी में पहुंचते ही लहराते फूलों की खेती कराने लगती थी। आज वहां धान बाजरा मक्का की फसलें खड़े दिखाई देती।

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देवमई विकासखंड के करचलपुर, खरौली ,मिराईं, गलाथा, कौड़िया, रामघाट , बेरी नारी, छिवली मलवां विकासखंड के बेनीखेड़ा, जाड़ेकापुरवा, बिंदकी फार्म ,नयाखेड़ा ,बड़ाखेड़ा, मदारपुर ,दरियापुरकटरी, दरियापुर बांगर मल्लूखेड़ा, थानपुर ,मानिकपुर ,सदनहा, कालीकुंडी आदि गांवो में बहुतायत फूलों की खेती होती है ।अवसेरी खेड़ा के बाबूराम ने बताया गुलाब, गेंदा, बिजली, गुलदावरी, नवरंग ,जाफरी आदि फूलों की खेती हम लोग करते चले आए हैं ।

करचलपुर गांव के युवा किसान धीरज निषाद ने बताया हमें अपने पिता राजाराम से फूलों की खेती विरासत में मिली है ।पिता के साथ फूलों की खेती करते चले आ रहे हैं ।एक बीघे फूल की खेती में निराई ,गुड़ाई, खाद ,पांस ,कीटनाशक, तोड़ाई से लेकर मंडी पहुंचाने तक ₹ 20हजार की लागत आती है । सालक ठीक-ठाक होने पर ₹1लाख रुपये प्रति बीघे की औसत से आय हुई है। फूल तोड़ने के लिए 1 बजे रात को खेत में जाना पड़ता है । 4 बजे तक फूल तोड़ने के बाद कानपुर की तीन प्रमुख मंडियां नौबस्ता, शिवाला तथा पंचक्की नौका विहार जाजमऊ पहुंचाना पड़ता है ।

लॉकडाउन में कुल नुकसान हाथ लगा है ।अब हमें धान, बाजरा ,मक्का तिल की खेती करनी पड़ रही है । जिसका भंडारण किया जा सके और बाजार भाव सही मिलने पर बेंचा जा सके।

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