सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर की 800 साल पुरानी प्रथा की खत्म !

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नई दिल्ली–सबरीमाला मंदिर में अब किसी भी एज ग्रुप की महिलाओं को एंट्री से नहीं रोका जा सकेगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में हर उम्र वर्ग की महिलाओं के मंदिर में प्रवेश का रास्ता खोल दिया है। सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यों की संवैधानिक बेंच ने 4-1 के बहुमत से फैसला सुनाया। 

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पहले यहां 10 साल की बच्चियों से लेकर 50 साल तक की महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी थी। यह प्रथा 800 साल से चली आ रही थी। एक याचिका में इसे चुनौती दी गई थी। केरल सरकार मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के पक्ष में थी। सबरीमाला मंदिर का संचालन करने वाला त्रावणकोर देवस्वम बोर्ड अब कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करने की तैयारी में है।

सुप्रीम कोर्ट ने 25 जुलाई को संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 (धार्मिक स्वतंत्रता) का जिक्र करते हुए कहा था कि किसी व्यक्ति को मान्यताओं के आधार पर मंदिर में प्रवेश करने से नहीं रोक सकते। बोर्ड अगर मान्यताओं की बात करता है तो साबित करे कि महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी धार्मिक प्रथाओं का अभिन्न अंग है। क्या सिर्फ माहवारी से ही महिलाएं मलिन हो जाती हैं? कोर्ट का यह भी कहना था कि 10 से 50 साल की उम्र तय करने का तार्किक आधार क्या है? लड़की काे नौ साल की उम्र में मासिक धर्म शुरू हो जाए या 50 की उम्र के बाद भी जारी रहे तो क्या होगा? 

केरल में शैव और वैष्णवों में बढ़ते वैमनस्य के कारण एक मध्य मार्ग की स्थापना की गई थी। इसके तहत अय्यप्पा स्वामी का सबरीमाला मंदिर बनाया गया था। इसमें सभी पंथ के लोग आ सकते थे। ये मंदिर 800 साल पुराना माना जाता है। अयप्पा स्वामी को ब्रह्मचारी माना गया है। इसी वजह से मंदिर में उन महिलाओं का प्रवेश वर्जित था जो रजस्वला हो सकती थीं। 

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