‘पैडवुमेन दीदी’ ने गांवों में बदली महिलाओं की सोंच

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औरैया– फिल्म पैडमैन के हीरो अक्षय कुमार ने महिलाओं के अहम मुद्दे पर खूब सुर्खियां बटोरीं। जिले की पैडवुमेन अनीता व प्रियंका सुर्खियों से दूर गांव-गांव जाकर महिलाओं की सोच बदलने में जुटी हैं। महिलाएं व झुग्गी झोपड़ी में रहने वाली लड़कियां इन्हें दीदी के नाम से जानती हैं।

ये पैडवुमेन गांव-गांव व झुग्गी बस्तियों में जाकर महिलाओं और लड़कियों से माहवारी विषय पर खुलकर बात करती हैं। इसके साथ ही ब्लॉक की तरफ से खुले सेनेटरी केंद्र से सस्ते पैड भी उपलब्ध कराती हैं। हालत ये है कि आज दर्जनों गांव की महिलाओं व लड़कियों की सोच बदल गई है। वह अब सेनेटरी पैड मांगने से बिल्कुल नहीं झिझकतीं हैं। यही नहीं गांव की तमाम महिलाएं व लड़कियां भी इस अभियान से जुड़ गई हैं और सेनेटरी केंद्र से सस्ते पैड गांव लाकर वितरित कर रही हैं।

गांव जनेदपुर(घोरेरा) निवासी अनीता एक सामान्य सा जीवन जी रही थीं। पति महेंद्र प्रताप खेती में व्यस्त थे । दो साल पहले सेनेटरी उत्पादन केंद्र खुला। जब उसे पता चला कि यहां पर सस्ते पैड महिलाओं को मिलते हैं तो पहले वह केंद्र गई और समझा। विचार आया कि कुछ ऐसा ही किया जाए, जिससे महिलाओं का भला हो। फिर क्या था वह निकल पड़ी गांव-गांव इसका प्रचार प्रसार करने। पहले तो उसने अपने पति से यह बात साझा करने में दो दिन लगा दिए। जब बताया तो पति ने भी सहमति दे दी। इसके बाद वह केंद्र से पैड लेकर गांव-गांव जातीं और वितरित करती। महिलाओं व लड़कियों को माहवारी के विषय में जानकारी देकर उनसे इस विषय पर खुलकर बात करतीं। इसके बाद हर कोई खुलकर बात करने लगा और गांव-गांव की तमाम महिलाएं उनके उस अभियान से जुड़ गईं।

अनीता बताती हैं कि हम सिर्फ बस्तियों में ही चर्चा नहीं करते हैं, बल्कि रोड पर भी पहचान की मिलने वाली महिलाओं से माहवारी को लेकर बात करते हैं जिससे महिलाओं की झिझक टूटे और वो इस विषय पर खुलकर बात कर सकें। खुशी है इतना मैंने सोचा भी नहीं था कि इतने कम समय में इतनी महिलाएं हमसे जुड़ेंगी। जब लड़कियां फोन करके उनसे सेनेटरी पैड मांगती हैं तो बहुत खुशी होती है।

कुछ ऐसी ही कहानी भाग्यनगर गांव की रहने वाली प्रिंयका की है। प्रिंयका बीए द्वितिय वर्ष की छात्रा हैं। पिता संजय खेती करते हैं। वह बताती हैं कि जब कुछ महिलाएं इस मिशन से जुड़ गई तो वह गांव तक ही सीमित नहीं रही बल्कि गांव से बाहर निकलीं और दूसरे गांव की महिलाओं व लड़कियों को भी जागरूक किया। बताया पहले तो गांव में कम लड़कियां निकलीं लेकिन अब वह जब जातीं है तो हर गांव में तमाम लड़कियां उनके साथ चल देती हैं। अनीता व प्रियंका बताती है कि दर्जनों गांव की महिलाएं अब कपड़ा नहीं पैड इस्तेमाल करती है। क्षेत्र के मधूपुर, मई मानपुर, खगीपुर, महाराजपुर, दयालनगर आदि में महिलाएं जागरूक होकर इस अभियान से जुड़ी हैं।

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ये महिलाएं जागरूक भी हुईं और काम भी मिला:

भाग्यनगर ब्लॉक के पंचायत भवन में सेनेटरी पैड निर्माण केंद्र खुला तो गांव-गांव महिलाएं तो जागरूक हुई हैं। इसके साथ ही तमाम महिलाओं को पार्ट टाइम काम भी मिल गया। पहले तो घर वालों ने कहा कि ये कोई काम है।  लेकिन अब कोई नहीं कहता। तमाम महिलाएं पैड निर्माण के लिए जाती हैं। पैड निर्माण में लगीं भाग्यनगर गांव की सुप्रिया व सुदामा बताती है कि एक पैड निर्माण में उन्हें एक रुपये मिलता है। दिन भर में सौ तक पैड बना लेती हैं। जिससे आमदनी भी होती है।

अब गांव-गांव प्रधान भी ले जाते हैं पैड:

जागरूकता अभियान जिले में ऐसा चला कि अब तमाम गांव के प्रधान भी इस सेंटर से पैड ले जाते है और गांव की महिलाओं व लड़कियों को घर-घर पैड का वितरण कराते हैं। अभियान का असर यह रहा कि गांव-गांव महिलाएं अब इस अहम मुद्दे पर बोलने लगी हैं और खुलकर पैड भी मांगने लगी हैं।

15 रुपये में मिलते है छह पैड:

ब्लॉक भाग्यनगर के सामने खुले पंचायत उद्योग केंद्र में चल रहे सेनेटरी निर्माण केंद्र के प्रभारी एडीओ पंचायत बृजेंद्र त्रिपाठी बताते हैं कि पहले किराये के मकान में केंद्र चलता था। यह पिछली सरकार में कन्नौज सांसद डिंपल यादव की पहल पर शुरू हुआ था। चार माह पहले ही भाग्यनगर ब्लॉक में खुला है। बताया मथुरा व वृंदावन से पैड बनाने का कच्चा माल आता है। एक  पैकेट जिसमें छह पीस होते है। उसकी लागत 18 रुपये आती है। लेकिन तीन रुपये सरकार वहन करती है जिससे एक पैकेट 15 रुपये में बिकता है। अनीता व प्रियंका ने बेहतर काम किया है। अब कई गांव में पैड जाते हैं। हर माह 25-30 गत्ते बिक रहे हैं। एक गत्ते में 60 पैकेट होते हैं। अभी सिर्फ गांवों में ही इसकी खपत हो रही है। कोशिश है कि बाजार में भी इसे बेचा जाए। 

( रिपोर्ट-वरुण गुप्ता ,औरैया )

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