कोरोना का करिश्मा: पेट्रोल-डीज़ल के दाम शून्य से भी नीचे !

1986 के बाद ये पहली बार जब कच्चे तेल की कीमत शून्य तक गिरी हो..

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अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में सोमवार को कच्चे तेल की कीमत गिर कर शून्य से नीचे चली गई। 1986 के बाद ये पहली बार जब कच्चे तेल की कीमत (Price) शून्य तक गिरी हो। दरअसल कोरोना रोकथाम के लिए दुनिया के ज़्यादातर देशो में हवाई जहाज़ समेत परिवहन का हर माध्यम बंद है। यानी हवाई जहाज, रेल, बसें, गाड़ियाँ समेत सारे साधन बंद पड़े है। नतीज़तन कोई देश तेल नहीं खरीद रहा है।

Oilprices | अमेरिका में कच्चा तेल शून्य ...

37.63 डॉलर प्रति बैरल पहुंची कीमत

वहीं कोरोना वायरस संकट के कारण कच्चे तेल की मांग में कमी आई है और तेल की सभी भंडारण सुविधाएं भी अपनी पूर्ण क्षमता पर पहुंच चुकी हैं। सोमवार को बाजार में कच्चा तेल की कीमत (Price) शून्य से नीचे 37.63 डॉलर प्रति बैरल पहुंच गई।

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अमेरिका में शून्य डॉलर से नीचे ...

हालांकि भारत की निर्भरता ब्रेंट क्रूड की सप्लाई पर है, ना कि डब्ल्यूटीआई पर। इसलिए भारत पर अमेरिकी क्रूड के नेगेटिव होने का खास असर नहीं पड़ेगा। ब्रेंट का दाम अब भी 20 डॉलर के ऊपर बना हुआ है और यह गिरावट सिर्फ WTI के मई वायदा में दिखाई दी, जून वायदा अब भी 20 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर है। अमेरिकी कच्चा तेल की जून डिलीवरी में 14.8 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है, फिलहाल इसकी कीमत (Price) 21.32 डॉलर प्रति बैरल है। यानी अंतरराष्ट्रीय बाजार में डब्ल्यूटीआई की कीमत भले ही सस्ती हो जाए, लेकिन आपको पेट्रोल की कीमत ज्यादा ही चुकानी होगी।

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आपको क्या होगा फ़ायदा?

तेल की कीमत शून्य से नीचे गिरने से आपको कोई फ़ायदा नहीं है। आप पेट्रोल और डीज़ल पेट्रोल पंप से ही खरीदेंगे जो किसी कंपनी का है, वह आपसे पूरे पैसे वसूलेगी।

बोतलबंद पानी से कम कच्चे तेल की कीमत ...

इसकी एक बड़ी वजह यह है कि भारत सरकार ने अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल (Petrol-Diesel) की कीमत गिरने के बाद भी उस पर आयात कर बढ़ा दिया और तमाम राज्य सरकारों ने भी वैट की दर बढ़ा दी। नतीजा यह हुआ कि जिस समय अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमत गिरी, भारत में पेट्रोल, डीज़ल (Petrol-Diesel) महँगे हो गए।

संक्रमण ठीक होने के बाद भी नहीं बढ़ेंगे दाम

गौरतलब है कि कोरोना वायरस संक्रमण की स्थिति ठीक होने के बाद भी तेल की माँग बहुत अधिक नहीं निकलेगी। इसकी वजह यह है कि अमेरिका समेत कई देश रोज़ाना 3 करोड़ बैरल कच्चा तेल भंडार में रख रहे हैं। अर्थव्यवस्था सुधरने के बाद भी वे बहुत अधिक तेल नहीं खरीदेंगे। ऐसे में माँग नहीं निकलेगी तो कीमतें भी कम ही रहेंगी।

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