निजी स्कूलों ने किताबें बेचने का दिया ठेका,दुकानदार नही दे रहे ग्राहकों को पक्का बिल

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फर्रुखाबाद– योगी सरकार की लाख कोशिश के बाद भी शिक्षा माफिया और भ्रष्टाचारी सुधारने का नाम नही ले रहे है ।फ़र्रुखाबाद में अधिकारियो की सह पर बच्चो की किताबो में टैक्स चोरी चालू है। 

नए शैक्षिक सत्र का आगाज हो चुका है ।जिले में निजी शिक्षण संस्थानों में अलग-अलग प्रकाशन की किताबें भी लागू हो चुकी है। नए शैक्षणिक सत्र में किताबों पर कमीशन का जमकर खेल किया जा रहा है। निजी स्कूलों में नेशनल काउंसलिंग फॉर एजुकेशन रिसर्च एंड ट्रेनिंग (एनसीआरटी) की किताबों के बजाए प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबें पढ़ाई जा रही हैं जिससे छात्रों पर किताबी व अभिभावकों पर आर्थिक बोझ अधिक पड़ रहा है।

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एनसीआरटी बुक्स का सेट जो 300 रुपये के आसपास होता है वही प्राइवेट पब्लिशर्स का वही सेट 3000 रुपए से 6000 के इर्द-गिर्द ठहरता है। कमीशन की रकम का बटवारा स्कूल प्रशासन व दुकानदारों में हो जाता है।आलम यह है कि अच्छी पढ़ाई का सपना लिए प्राइवेट की तरफ रुख करने वाले छात्रों एवं अभिभावकों पर कमिशन की दोहरी मार पड़ रही है।निजी स्कूल प्रशासन अभिभावकों को किताबों के बजाए एक निश्चित दुकान बताता है जहां निर्धारित दुकान से उस स्कूल की किताब मिल जाती है ।इस मजबूरी का फायदा दुकानदार उठाता है। एनसीआरटी की किताब पर छूट भी मिलती है और दाम भी कम होता है। जबकि प्राइवेट पब्लिशर्स की किताब है पब्लिकेशन द्वारा काफी छूट पर मुहैया कराई जा रही हैं लेकिन दुकानदार अभिभावकों से एमआरपी रेट पर ही पैसा वसूलते हैं या छूट की रकम दुकानदार और स्कूल प्रशासन में बांटी जाती है ।इसके अलावा प्रकाशक द्वारा हर स्कूल के लिए अलग-अलग लोकलुभावन स्कीम भी रखी जाती है। 

कमीशन की खेल में प्रतिवर्ष किताबों में बदलाव कर दिया जाता है जिससे बच्चे आपस में पुरानी किताबों की अदला-बदली ना कर सकें।अभिभावकों एवं छात्रों को बरगलाने के लिए स्कूल स्लैबस का हवाला देकर शांत करवा देते हैं।इससे हर वर्ष स्कूल के सारे बच्चे एक ही दुकान से किताबें खरीदने को मजबूर हो जाते हैं और इसका सीधा फायदा पब्लिशर्स दुकानदार को हो जाता है ।इसके अलावा किताबों के साथ साथ नोटबुक्स में भी बड़े पैमाने पर खेल किया जा रहा है। इसके लिए स्कूल का नाम छपवाने का बहाना लिया जाता है। साथ ही स्कूल का नाम छपने से यही कापियां बाजार रेट से दो गुना हो जाती है। खास बात दिखती है कि यह कापी केवल निर्धारित दुकानों पर ही उपलब्ध होती है जिसे छात्र मजबूरी से उस दुकान पर मनमाने दामों पर लेने के लिए बाध्य होते हैं।ऐसे में शिक्षा व्यवस्था के साथ-साथ अभिभावकों को भी आर्थिक बोझ उठाने पर मजबूर होना पड़ रहा है।

किताबो के खेल में बुक डिपो से लेकर छोटे दुकानदार खुलेआम सरकार को मिलने वाले टैक्स की चोरी कर रहे है जिले के शिक्षा विभाग के अधिकारी अपने आँख कान दोनों बन्द किये हुए है।स्कूल प्रसाशन बच्चों को पहले रेट लिखी हुई लिस्ट देते है।उसके आधार पर अभिभावक बुक डिपो से किताबे खरीदने जाते है लगभग हर आदमी अपने बच्चे के तीन से चार हजार की किताबें तो खरीद लेता है लेकिन उसको बिल नही दिया जाता है।जब इस बात को लेकर कई अभिभावकों से बातचीत की गई तो उन्होंने बताया सरकार से यह सभी दुकानदार टैक्स चोरी करने के कारण हम लोगो को पक्का विल नही देते है।सभी की मिलीभगत से यह घपलेबाजी हो रही है।

(रिपोर्ट – दिलीप कटियार , फर्रुखाबाद )

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