अनदेखी से सरकारी भवन दुर्दशा का शिकार, ग्रामीणों ने बना लिया मवेशियों का तबेला

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सरकारी तंत्र की अनदेखी का खामियाजा सरकारी भवन जर्जर होकर दुर्दशा का शिकार हो रहे हैं । फतेहपुर जनपद के जहानाबाद विधानसभा के मलवां विकासखंड के प्रत्येक गांव में पंचायत भवन, सामुदायिक मिलन केंद्र, सरकारी भवन मवेशियों के तबेला बन कर रह गए हैं।

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दबंग छवि के लोगों ने भूसा और लकड़ी कंडे भरकर कब्जा कर लिया है। ग्राम प्रधानों ने भी ग्रामीणों में चुनावी चौसर में वोटों की गणित प्रभावित ना हो इसलिए 5 साल तक इनकी तरफ नहीं देखा। अनावश्यक मदों में निधि को खर्च किया गया ,लेकिन गांव की मूलभूत आवश्यकता पंचायत भवन, सामुदायिक मिलन केंद्र पर फूटी कौड़ी भी नहीं खर्च की गई। नतीजा दुर्दशा का शिकार सरकारी भवन तबेले की शक्ल में तब्दील हो गए हैं।

अभयपुर गाँव का पंचायत भवन जिसका निर्माण आजादी के बाद सर्व प्रथम प्रधान शिवबकस सिंह गौतम ने स्वयं गाँव के लोगों के सहयोग से करवाया था।

आगे चलकर सरकार द्वारा चुनाव प्रक्रिया से प्रधान चन्द्र शेखर दुबे,महावीर निषाद,रामस्वरूप निषाद,शिवाजी त्रिवेदी,ऊषा सिहं चौहान ,सुरजीत यादव प्रति 5 साल प्रधान रहे।

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अपवाद के लिए संजय सिंह गौतम ने एक दशक पहले प्रधान पद में रहते हुए पंचायत भवन का मरम्मतीकरण कराया था।जो जर्जर अवस्था में है । निवर्तमान ग्राम प्रधान विद्या देवी के प्रतिनिधि संजय सिंह ने बताया नए पंचायत भवन की लगातार मांग की जा रही थी जो अभी तक पूरी नहीं हुई।

सामुदायिक मिलन केंद्र मवेशियों का अड्डा-

एक दशक पहले गांव के सभी वर्गों के लोगों को एक छत के नीचे बैठकर सामाजिक सरोकार ,गांव के विकास के लिए विचार विमर्श करने के हेतु सामुदायिक मिलन केंद्र का निर्माण किया गया था। निर्माण में धांधली के चलते ग्रामीणों ने मामले को उछाला था ।जिलाधिकारी की जांच में आधा दर्जन सम्मिलित कर्मचारीयों व अधिकारीयों को निलंबित व प्रतिकूल प्रविष्ट दी गई थी ।फिर भी सामुदायिक मिलन केंद्र ग्राम पंचायत को रंग रोगन कराकर सौंपा नहीं गया ।नतीजा ग्रामीणों ने खूंटा गाड़ कर सामुदायिक मिलन केन्द्र में भैंसें बांध रखी है। निवर्तमान प्रधान महेश सचिव जितेंद्र सिंह ने बताया विवाद में फंसने के बाद सामुदायिक मिलन केंद्र को ग्राम सभा को नहीं सौंपा गया था।

कन्या पाठशाला हेतु निर्मित भवन जमीदोज-

गोधरौली गांव में कन्या पाठशाला प्राथमिक स्तर पर संचालित करने के लिए दो दशक पहले भवन का निर्माण सरकारी मद से कराया गया था। लेकिन कागजी व्यवस्था पूरी ना होने की वजह से विद्यालय का संचालन नहीं हो पाया। 20 वर्ष के अंदर तत्कालीन ग्राम प्रधानों ने इसकी मरम्मत भी नहीं कराई ।देखरेख के अभाव में भवन जमींदोज हो गया सरकारी पैसे का बंदरबांट खुलकर किया गया लेकिन जिन आवश्यकताओं के लिए इन भवनों का निर्माण हुआ। उनके लिए बेमकसद साबित हुए। अधिकतर सरकारी भवन मवेशियों के तबेला बन चुके हैं।

 

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