तीन तलाक पर देवबंद उलेमाओं ने उठाया सवाल, कहा – जुर्म नहीं तो सजा कैसी ?

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सहारनपुर — केन्द्र सरकार द्वारा तीन तलाक के मुद्दे पर कानून बनाने की कवायद शुरू होते ही राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है। इस फैसले से जहां मुस्लि्म महिलाओं में खुशी की लहर व्यााप्त है, तो वहीं देवबंदी उलेमाओं ने इस पर सवाल खड़ा कर दिया है।

देवबंदी उलेमाओं का कहना है कि इस तरह से तीन तलाक के मामले में सजा मुकर्रर करने से पहले सरकार को उससे सबंधित जिम्मेदार लोगों, सामाजिक संगठनों, धर्म गुरूओं आदि से चर्चा कर सलाह जरूर कर लेना चाहिए। तजीम उलेमा-ए-हिंद के प्रदेश अध्यजक्ष व अरबी के प्रसिद्ध विद्वान मौलाना नदीमुल वाजदी का कहना है कि अभी तक तीन तलाक के खिलाफ जो कानून बना नहीं है सिर्फ उसका मसौदा तैयार हुआ है। यह पार्लियामेंट में पेश होगा उस पर बहस होगी उसके बाद ही यह कानून की शक्ल लेगा। 

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उन्होंने कहा कि हुकूमत कोई भी कानून बनाए, उससे पहले इससे संबंधित लोग जैसे उलेमा, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड या दूसरी तजीमों से चर्चा कर सलाह लेनी चाहिए। क्योंकि यह मुसलमानों से संबंधित मसला है। मौलाना नदीमुल वाजदी ने कहा कि जब अदालत तीन तलाक को मानती ही नहीं तो फिर सजा किस बात की दी जाएगी।हालांकि कोर्ट अगर इसको मानती है, तो फिर ऑल इंडिया मुस्लिम पसर्नल लॉ बोर्ड और मुसलमानों की बात पर पक्की मुहर लग जाएगी कि इस्लाम में तीन तलाक मान्य है।

उन्होंने कहा कि पूर्व में अदालत तीन तलाक पर पाबंदी लगा चुकी है, जबकि दारुल उलूम और दूसरे इदारों से जो फतवे आते हैं ,उसमें साफ कहा गया है कि तीन तलाक देने से तलाक हो जाएगा। वाजदी ने कहा कि केन्द्र  सरकार तीन तलाक पर सजा देना चाह रही है।वाजदी ने कहा कि तीन तलाक पर सजा देना है, तो सवाल यह भी उठता है कि क्या वह तीन तलाक है या नहीं। अगर तीन तलाक नहीं है, तो सजा किस बात की और अगर हो गई है, तो क्या हुकूमत ने मुसलमानों के रुख को मान लिया है। 

 

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