दिल्ली बोर्डर पर आंदोलन पर बैठे किसान अब लौट रहे हैं घर……

सब तरफ चर्चा का विषय बना रहा भारत के 21वीं सदी का किसान आंदोलन अब खत्म हो चला है।

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अपनी मांगों को लेकर दिल्ली बोर्डर पर साल भर से आंदोलन कर रहें पंजाब के किसान अब जीत कर घर लौट रहे हैं। यूनियन नेताओं ने मंगलवार को कहा कि “भारत के किसान लंबे समय से चल रहे विरोध प्रदर्शनों को बंद कर देंगे, क्योंकि सरकार ने लंबित मांगों को स्वीकार करने के लिए सहमति व्यक्त की है, जिसमें चावल और गेहूं से साथ अन्य सभी उपज की कीमतों पर विचार करने का आश्वासन भी शामिल है।‘’

क्या था किसान आंदोलन?

किसान आंदोलन की शुरुआत एक बिल के साथ होती है। 20 सितंबर 2020 को पार्लियामेंट में एक बिल पास हुआ,फार्म बिल। जिसे किसानो ने एंटी फार्म बिल कह कर मानने से इंकार किया। और इसे सरकार से वापस लेने की अपील की। लेकिन केन्द्रीय सरकार ने इस अपील को साफ तौर से यह खारिज दिया। और फिर यहीं से शुरु हुआ भारत के 21वीं सदी का किसान आंदोलन। स्थानिय स्तर पर किसानों द्वारा चल रहे इस बिल के विरोध का जब सरकार पर कोई असर होता नहीं दिखा तब किसान युनियन ने दिल्ली चलो के नारे के साथ हजारों किसान को इक्कट्ठा कर दिल्ली के बोर्डर पर अपना आंदोलन शुरु कर दिया। दिंसबर 2020 में शुरु हुए इस आंदोलन को आज एक साल हो चुका है। इस दौरान देश भर से किसानों को सरहाना और आलोचना दोनो का सामना करना पड़ा। कड़ाके कि ठंड हो या कोरोना जैसी महामारी, कोई भी किसान सरकार से बिना अपनी मांग मनवाए घर नहीं लौटना चाहता था। इस दौरान कुछ किसानों की मृत्यु भी हुई, पर यह आंदोलन नहीं रुका।

क्या था फार्म बिल 2020?

सितंबर 2020 में पार्लियामेंट मे तीन फार्म बिल पास किए गए थे जिसमें इन बातों का शामिल किया गया था…..

यह बिल किसानों को अपना अनाज एपीएमसी निंयत्रित बाजारों के बाहर भी बेचने की अनुमति देता है। जिससे किसानों के पास अधिक विकल्प होंगा कि वे अपना अनाज किसे बेचना चाहते हैं। एपीएमसी सरकार द्वारा नियंत्रित मार्केटिंग यार्ड या मंडियां होती है।

अनुसूचित किसानों की उपज के इलेक्ट्रॉनिक व्यापार और ई-कॉमर्स की अनुमति देता है।

राज्य सरकारों को बाहरी व्यापार क्षेत्रमें आयोजित किसानों के अनाज बेचने के लिए किसानों, व्यापारियों और इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म पर कोई बाजार शुल्क, उपकर या लेवी लगाने से रोकता है।

कीमतों के उल्लेख सहित खरीदारों के साथ पूर्व-व्यवस्थित अनुबंध करने के लिए किसानों को कानूनी ढांचा प्रदान करता है।

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अनाज, दालें, आलू, प्याज, खाद्य तिलहन और तेल जैसे खाद्य पदार्थों को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटाता है, “असाधारण परिस्थितियों” को छोड़कर बागवानी तकनीकों द्वारा उत्पादित कृषि वस्तुओं पर स्टॉकहोल्डिंग सीमा को हटाता है।

यह बिल कृषि उत्पादों पर स्टॉक की कोई सीमा लगाने की तभी अनुमति देता है, जब कीमतों में तेज वृद्धि हो।

किसानों ने क्यों किया बिल का विरोध:

उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा के किसान इन विधेयकों के प्रावधानों से नाराज़ थे। क्योंकि उन्हें डर था कि ये विधेयक एक ऐसा मंच हो सकते हैं जिसे सरकार (केंद्र में) स्थापित कर रही है, समर्थन को बदलने या खत्म करने के लिए। उन्हें डर था कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) गारंटी जो कि 1960 के दशक की हरित क्रांति के बाद से उनकी सुरक्षा का जाल थी, शायद किसानों को बेहतर मंच देने के बहाने छीन लेगी।

1 साल बाद हुआ फार्म बिल भंग:

12 जनवरी 2021 को, सर्वोच्च न्यायालय ने कृषि कानूनों के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी और कृषि कानूनों से संबंधित किसानों की शिकायतों को देखने के लिए एक समिति नियुक्त की। 19 नवंबर, 2021 को भारत के प्रधान मंत्री, नरेंद्र मोदी ने घोषणा की ‘’कि उनकी सरकार दिसंबर में आगामी संसदीय सत्र में तीनों कानूनों को निरस्त कर देगी।‘’ 1 दिसंबर 2021 को, कानूनों को औपचारिक रूप से निरस्त कर दिया गया है।

पहले सिख गुरु, गुरु नानक जी की जयंती, गुरुपुरब के अवसर पर देश के नाम एक संबोधन में प्रधान मंत्री, नरेंद्र मोदी ने कहा कि “हमारे किसानों, विशेष रूप से छोटे किसानों का समर्थन करने के हमारे सर्वोत्तम इरादे के बावजूद, हम उन्हें विश्वास में नहीं ले सके। मैं अपने देशवासियों से माफी मांगता हूं। केंद्र सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने का फैसला किया है, ”उन्होंने ।

 

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