निकाय चुनाव की चुनावी बिसात पर सजे राजनीतिक पार्टियों के मोहरे

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(श्वेता सिंह)

नगर निकाय के चुनावी महाभारत में पल – पल बदलते कई रंग देखने को मिले । कई पार्टियां तो बहुत पहले से ही इस शतरंज की बिसात पर अपना दांव खेल रही थीं । इन चुनावों में सबसे खास बात ये रही कि जिलों का ये चुनाव बिलकुल विधायकी के चुनाव स्तर पर लड़ा जा रहा था । सभी पार्टियों ने पूरा जोर लगा दिया और अपनी जीत का पक्का दावा किया।

विभिन्न राजनैतिक दलों ने वर्गभेद और जातिवाद के आधार पर अपना दांव फेंका । किसी पार्टी ने पिछले जीते हुए उम्मीदवार पर दांव लगाया तो किसी पार्टी ने अल्पसंख्यकों और दलितों पर अपना भरोसा जताते हुए उन्हें राजनीतिक रण में उतारा। इस बार के निकाय चुनाव में कई बड़े बदलाव देखने को मिले ; जैसे इस बार निकाय चुनाव में अपनी किस्मत आज़माने के लिए कई जगहों से ‘ थर्ड जेंडर’ या ‘किन्नरों ‘ के नाम भी सामने आये। और तो और बड़ी – बड़ी राजनैतिक पार्टियों ने भी इन किन्नरों के माध्यम से अपनी किस्मत आज़माने के लिए इन पर दांव खेला और उन्हें आम लोगों से जुड़ने का सुनहरा मौका दिया। कुछ पार्टियां तो पहली बार उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव में अपना भाग्य बचाने उतरीं तो कुछ अपनी साख ही बचाते नजर आये।

वर्तमान में देश के केंद्र और उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े राजनीतिक समर में अपने झंडे गाड़ने वाली भाजपा अब यूपी के प्रत्येक जिले में अपना कमल खिलाना चाहती है और इसीलिये भाजपा पूरे प्रदेश में मोदी इफ़ेक्ट के सहारे परिवर्तन और विकास की सीढ़ी के द्वारा निकाय चुनाव में अपना परचम लहराना चाहती थी । अपनी रणनीति को अमली जामा पहनाने के लिए भाजपा के सभी स्टार प्रचारक यानि की राजनीती के बड़े चेहरे अपनी पार्टी से उतारे गए उम्मीदवारों के समर्थन में जगह – जगह ताबड़तोड़ प्रचार करते दिखाई दिए। इन स्टार प्रचारकों में सबसे पहला नाम रहा – उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का। इनके अलावा राजधानी के पूर्व मेयर रहे दिनेश शर्मा की भी काफी मांग रही। प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव मौर्या सहित अन्य कई गणमान्य लोग भी पूरे जोर – शोर से प्रचार में लगे रहे।

वहीँ दूसरी तरफ कांग्रेस भी इस महासमर में अपने तगड़े दांवपेंच खेलती नजर आयी। इसका नमूना उस वक्त देखने में आया जब राजधानी में मेयर पद के लिए पार्टी ने दूसरे चरण के नामांकन के ऐन वक्त पर दोपहर के समय बीजेपी के दिनेश शर्मा की समधन को अपना मेयर उम्मीदवार घोषित कर दिया। ये वाकया वाकई में काफी चौंकाने वाला था। कांग्रेस ने अपनी रणनीति के तहत पांसा फेकने से पहले जिस उम्मीदवार पर भरोसा जताया था ; वो खुद ही उस समय कुछ भी समझ नहीं पायी और अपनी ही पार्टी से रूठकर अपनी सबसे बड़ी विरोधी भाजपा का दामन थाम लिया। इन सबसे कांग्रेस को झटका तो लगा लेकिन पार्टी कर भी क्या सकती थी आखिर उन्हें लीक के मुख्य पृष्ठ पर भी तो आना था ।

उत्तर प्रदेश में कभी सबसे बड़ी पार्टी मानी जाने वाली समाजवादी पार्टी अपने पुराने ही पैतरों पर कायम रही। जिसके तहत उसने जीत दिलाने के लिए अधिकतर अल्पसंख्यकों पर भरोसा जताया। हालाँकि पार्टी ने कुछ अलग करने का प्रयास भी किया ; जिसके अंतर्गत सपा ने अच्छी छवि वाले किन्नरों को मैदान में उतारा। उधर कभी मजबूती से उभर रही बहुजन समाज पार्टी तो केवल अपनी बची – खुची साख को ही बचाती नजर आ रही थी और अपने पुराने ढर्रे पर ही चल रही थी; यानि कि अपनी उसी पुरानी दलित रणनीति के तहत कार्यवाही करती नजर आयी। इस महासमर में एक नई राजनीतिक पार्टी भी कूद गयी और अपने प्रत्याशी मैदान में उतार दिए। इस पार्टी का नाम है दिल्ली में आये दिन सुर्ख़ियों में रहने वाली आम आदमी पार्टी। गौर करने वाली बात ये है कि आप उम्मीदवार पहली बार निकाय चुनाव में अपनी किस्मत आज़मा रहे थे । ये तो रही बात देश की बड़ी राजनीतिक पार्टियों की ; हमे अपनी दम पर मैदान में लड़ने वाले निर्दलीय प्रत्याशियों को भी नहीं भूलना चाहिए। कई निर्दलीय प्रत्याशी तो सिर्फ इसलिए अपने दम पर लड़ रहे थे क्योंकि उन्हें कभी देश की बड़ी पार्टियों द्वारा अपना नेता माना जाने वाली पार्टियों ने इस बार के निकाय चुनाव में उन पर भरोसा न जताते हुए उन्हें अपनी पार्टी से टिकट नहीं दिया। तो ऐसी परस्थिति में भी इन प्रत्याशियों ने हार नहीं मानी और निर्दलीय प्रत्याशी बनकर बड़ी – बड़ी पार्टियों को चुनौती दे डाली। हालाँकि इससे उन निर्दलीय उम्मीदवारों की नाराजगी भी जाहिर हुई।

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अब बात करते हैं सभी राजनीतिक दलों के ‘सुनहरे पत्र’ घोषणापत्र की ; तो देश के केंद्र सरकार की पार्टी बीजेपी ने इस निकाय चुनाव के लिए पहली बार अपना घोषणापत्र  जारी कर जनता – जनार्दन से कई वादे किये। वहीँ  दूसरी ओर सपा , बसपा , आम आदमी पार्टी सहित कांग्रेस ने भी अपने घोषणापत्र में मतदाताओं को कई तरह के फ्लेवर के लॉलीपॉप दिखाकर रिझाने का प्रयास किया। घोषणापत्र चाहे जैसा हो , प्राथमिकताएं कुछ इस प्रकार की होनी चाहिए –

-आदमी की बुनियादी जरूरतों रोटी , कपड़ा, मकान को प्रमुखता दी जाये।

-क्षेत्रवाद – जातिवाद को दरकिनार किया जाए। 

-लघु उद्योगों को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा दिया जाये।

-बंद पड़े कारखानों को शुरू करने की जरूरत , जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों की रोज़गार की जरूरत पूरी हो सके।

सवाल ये है कि क्या अपने हाई – फाई घोषणापत्रों के आधार पर पार्टियां लोगों को प्रभावित कर पाएंगी ?

अब यह देखना वाकई दिलचस्प होगा कि उत्तर प्रदेश की जनता केंद्र और यूपी में काबिज और विकास तथा परिवर्तन की बयार लाने का दावा करने वाली बीजेपी का राजतिलक करती है या अल्पसंख्यकों और दलितों की देवी कही जाने वाली बहन जी के उम्मीदवारों को सिंघासन सौंपती है या फिर कभी यूपी का राजा मानी जाने वाली पार्टी सपा को अपना राजा बनाती है। और सबसे बड़ी बात ये देखना भी कम दिलचस्प नहीं होगा कि क्या पहली बार निकाय चुनाव में किस्मत आज़मा रही आम आदमी पार्टी अपना खाता खोलने में भी सफल होती है या नहीं। खैर उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव की स्क्रिप्ट लिखी जा चुकी है और पूरी फिल्म का निर्माण प्रारम्भ हो गया है ; सभी पार्टियां अपनी अपनी फिल्म को हिट करने के लिए प्रयासरत हैं। अब ये तो जनता – जनार्दन ही निश्चित करेगी कि किसकी फिल्म बढ़िया होगी और सत्ता पर काबिज़ होगी।

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