यूपी की 80 लोकसभा सीटों की गोलबंदी का परिणाम है बुआ और भतीजे का मेल

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*लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी*

लखनऊ — सियासत में पहले ही ये माना जाता है कि इसमें न कोई दोस्त परमानेन्ट होता और न ही कोई दुश्मन परमानेन्ट होता है आज जो लखनऊ के ताज होटल में सियासत की नई इबारत लिखी जाएगी उसको सियासत में हमेशा याद किया जाएगा इससे इंकार नही किया जा सकता है। यह बात अलग है यह दोस्ती चलेगी कितने दिन क्या यह लोकसभा महासंग्राम तक ही सीमित रहेगी या आने वाले विधानसभा चुनाव में भी रहेगी यह तो काल्पनिक सवाल है।

 लेकिन बबुआ ने कांग्रेस का हाथ छोड़ बुआ का साथ पसंद कर लिया है जिसके सियासी परिणाम बहुत ही अच्छे आने की संभावनाओं से इंकार नही किया जा सकता है। जब 1992 के बाद राम लहर चल रही थी तो सपा के पूर्व सीईओ अब संरक्षक मुलायम सिंह यादव व बसपा के संस्थापक काशीराम ने एक होकर चुनाव लड़ा था और नारा दिया गया था कि “मिले काशीराम-मुलायम हवा में उड़ गए सियासी जय श्रीराम” इस दौर को एक लंबा वक़्त बीत चुका है और फिर सपा-बसपा की दुश्मनी भी ऐसी हुई कि सबने देखा और सुना। लखनऊ का गेस्ट हाउसकाण्ड इसके बाद चर्चा होती थी कि शायद अब कभी सपा और बसपा के रिस्ते बेहतर होगे लेकिन वह चर्चा ग़लत साबित हुई।

 सियासी हालात ने दोनों को एक होने पर मजबूर कर दिया सबसे ज़्यादा सपा की मजबूरी थी उसे लगा कि अगर बसपा के साथ नही गए तो हमारा बँधवा मज़दूर मुसलमान मोदी की भाजपा को हराने के लिए सीधे बसपा के पाले में चला जाएगा जिसके जाने के बाद सपा इतिहास बन जाएगी ऐसा न हो इस लिए बसपा के सामने लेटना ही बेहतर समझा अखिलेश यादव ने। यह गठबंधन ज़मीन पर आने के बाद की यूपी की सियासत के समीकरण बदल जाएँगे। 

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जब शनिवार को लखनऊ के ताज होटल में सपा के सीईओ अखिलेश यादव और बसपा की सुप्रीमो मायावती की संयुक्त प्रेस कॉन्फ़्रेंस करेगे और लोकसभा चुनाव 2019 के लिए अपनी साझा नीति की घोषणा करेगे जिसका सियासी गलियारों में काफ़ी दिनों से इंतज़ार हो रहा था अभी तक सब क़यासों पर ही आधारित था लेकिन अब सबकुछ सच होने जा रहा है।सियासी हल्को में चर्चा है कि मोदी की भाजपा के लिए 2019 का लोकसभा चुनाव उतना ही कठिन होने जा रहा जितना 2014 में आसान था।

दिल्ली के तख़्त पर बैठने का रास्ता यूपी ही तय करता है यह हम सब जानते है लेकिन सपा-बसपा के एक साथ आ जाने के बाद लगता है कि मोदी की भाजपा के लिए यह काम मुश्किल होने जा रहा है क्योंकि दलित-मुस्लिम व यादव और भी वोट है जो मोदी की भाजपा को उसकी ग़लत नीतियों के चलते सत्ता से हटाना चाहता है वह भी इसके साथ आ सकता है ऐसी संभावनाओं को भी बल मिल रहा है।

सपा-बसपा का साथ जातिगत आँकड़ो के हिसाब से बहुत मज़बूत लग रहा है मोदी की तमाम कोशिश रही कि यह गठबंधन न हो इसके लिए सरकारी तोते को भी लगाया गया परन्तु सफल नही हुए। यही गठबंधन था जिसने यूपी की तीन लोकसभा उपचुनाव व एक विधानसभा का उपचुनाव में मोदी से लेकर योगी तक को धूल चटा दी थी सारे फार्मूले फेल हो गए थे यहाँ तक योगी तो गोरखपुर में अपना बूथ तक हार गए थे।अब हम बात करते है इस गठबंधन से सपा को फ़ायदा होगा या बसपा को तो ज़्यादातर सियासी जानकारों का कहना है कि इस गठबंधन से सबसे ज़्यादा फ़ायदा सपा कंपनी को होने जा रहा है क्योंकि दलित वोट तो आसानी से ट्रांसफ़र हो जाएगा।

 लेकिन सपा का वोट बसपा वाली सीटों पर ट्रांसफ़र होने में शायद आनाकानी करे इसे लेकर बसपा पहले कहती भी थी कि हमें गठबंधन से उतना लाभ नही होता जितना हमारे गठबंधन साथी हो जाता है इसलिए हम गठबंधन पर ज़्यादा ध्यान नही देते लेकिन देश की सियासी हालात यही करने को कह रहे है शायद इस लिए गठबंधन हो रहा है ख़ैर कुछ भी कहो मोदी की भाजपा का खेल तो ख़राब हो ही रहा है।

 यह बात मोदी एण्ड शाह कंपनी भी महसूस कर रही है इस लिए उसने बिहार में गिर कर नीतीश को बराबर हिस्सेदारी दी है और सियासी मौसम विज्ञानिक राम विलास पासवान को भी उसकी मर्ज़ी के मुताबिक सीटें देकर बिहार में कुछ कन्ट्रोल करने की कोशिश की नही तो वहाँ भी चुनाव से पहले ही हार तय हो जाती जैसे यूपी में हो गई है।इस शेर के साथ अपनी बात समाप्त करता हूँ कि बदले-बदले से मेरी सरकार नज़र आते है घर की बर्बादी के आसार नज़र आते है।

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