कश्‍मीर पर आधारित फ़‍िल्‍म ‘हामिद’ की स्‍क्रीनिंग व बातचीत

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लखनऊ–‘लखनऊ सिनेफ़ाइल्‍स’ की ओर अनुराग पुस्‍तकालय में कश्‍मीर की पृष्‍ठभूमि पर बनी फ़‍िल्‍म ‘हामिद’ दिखायी गयी। ‘हामिद’ एक 7 साल के कश्मीरी बच्चे की कहानी है जिसके अब्‍बू गुम हो जाते हैं।

इस कहानी के ज़रिये फ़िल्मकार एजाज़ खान ने कश्मीर की त्रासदी का फिल्मांकन करने का प्रयास किया गया है। यह फ़िल्म कश्‍मीरी नाटककार मो. आमिन भट के नाटक ‘फ़ोन नंबर 786’ पर आधारित है। हामिद को उसका दोस्‍त बिलाल बताता है कि उसके अब्‍बू अल्‍लाह के पास चले गए हैं और उसकी माँ बताती है कि अल्‍ला का नंबर 786 है। हामिद कई बार इस नंबर को मिलाता है, लेकिन नंबर नहीं मिलता। एक दुकानदार उसे बताता है कि फ़ोन नंबर 10 अंकों को होता है। हामिद 786 को तीन बार लिखकर उसके आगे 9 लगाकर फ़ोन मिलाता है और फ़ोन कश्मीर घाटी में ही तैनात सीआरपीएफ़ के एक जवान को लग जाता है। हामिद को लगता है कि अल्‍ला मियाँ का नंबर लग गया है और वह उस जवान को अल्‍लाह समझकर बात करने लगता है। वह उससे बताता है कि कैसे उसके अब्‍बू के ग़ायब हो जाने के बाद से उसकी ज़िन्दगी ही बदल गयी है। उसकी माँ बहुत गुमसुम सी रहने लगती हैं।

हामिद अपने अब्‍बू को लिखा एक ख़त भी ‘अल्‍लाह’ को सुनाता है और कहता है कि वो उसे उसके अब्‍बू को सुना दें। अल्‍लाह को ख़ुश करने के लिए हामिद किश्ती बनाने का हुनर सीखता है जिसमें उसके अब्‍बू को महारत हासिल थी। जवान को भी हामिद से बात करके अपने तनाव से राहत मिलती है। हामिद को अभी भी उम्मीद रहती है कि अगर अल्‍लाह ख़ुश हो गए तो उसके अब्‍बू वापस आ जायेंगे। लेकिन एक दिन वह जवान हामिद को बता देता है कि उसके अब्‍बू अब कभी वापस नहीं आयेंगे। फ़िल्म के अन्त में हामिद अपनी अब्‍बू के पसंदीदा लाल रंग की एक किश्ती बनाता है और अपनी माॅँँ को उस किश्ती में जेहलम नदी की सैर कराता है।

फ़‍िल्‍म के बाद हुई बातचीत के दौरान फ़‍िल्‍म के बारे में अलग-अलग दर्शकों के अलग-अलग दृष्टिकोण सामने आये। कुछ लोगों को कहना था कि फ़ि‍ल्‍म में मानवीय नज़रिये से कश्‍मीर की समस्‍या का फ़‍िल्‍मांकन किया गया है और उसमें दिखाया गया है कि किस प्रकार कश्‍मीर में आम लोग और सेना के जवान दोनों भयंकर तनाव में जी रहे हैं और दोनों एक-दूसरे को अपना दुश्‍मन समझते हैं इसलिए उनमें आपस में कोई संवाद नहीं है। फ़‍िल्‍म में राजनीति से परे कश्‍मीरी जनता और घाटी में तैनात फ़ौज के बीच संवाद क़ायम होने की शुरुआत को दिखाया गया है।

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लेकिन बातचीत के दौरान अन्‍य लोगों ने इस बात पर ज़ोर दिया कि फ़‍िल्‍म में कुछ दृश्‍यों में कश्‍मीर की त्रासदी के कुछ आयामों को दिखाने के बावजूद लेखक और फ़‍िल्‍मकार ने कश्‍मीर समस्‍या के राजनीतिक और विवादास्‍पद चरित्र और कश्‍मीरियों के अलगाव को बढ़ाने में भारतीय राज्‍य की भूमिका उचित ढंग से नहीं उभारा है। फ़‍िल्‍म में कश्‍मीरियों के पक्ष और भारतीय राज्‍य के पक्ष के बीच तटस्‍थता और संतुलन क़ायम करने की कोशिश की है और कश्‍मीर में भारतीय राज्‍य के बर्बर दमन की वास्‍तविक तस्‍वीर नहीं प्रस्‍तुत की गयी है। इस मायने में कश्‍मीर समस्‍या में तटस्‍थ होने का का दावा करने के बावजूद अन्‍तत: भारतीय राज्‍य के उदारवादी पक्ष को स्‍थापित करने का काम किया है। फ़‍िल्‍म में यह भी दिखाया गया है कि कितना भी कष्‍ट हो, ईश्‍वर में आस्‍था रखनी चाहिए और उनकी प्रशंसा करनी चाहिए और देर-सबेर सब ठीक हो जायेगा, हालांकि कुछ दृश्‍यों में ख़ुदा से मोहभंग होता भी दिखायी दिया है। इस नज़रिये पर भी दर्शकों की अलग-अलग राय सामने आयी।

कुल मिलाकर फ़‍िल्‍म ने कश्‍मीर समस्‍या के विविध आयामों पर बातचीत के लिए कई महत्‍त्‍वपूर्ण बिन्‍दु दिए हैं, जो कई बहसों को जन्‍म देते हैं। इस मायने में यह फ़‍िल्‍म क़ामयाब रही है। इसे ज़रूर देखना चाहिए और इसपर देश के हर हिस्‍से में बातचीत होनी चाहिए।

बातचीत में रंगकर्मी और फ़‍िल्‍म अभिनेत्री मीनल कपूर, उमेश, रश्मि, उज्‍ज्‍वल सेठ, पुनीत, मीनाक्षी, लालचन्‍द्र, राेहित, ललित मोहन आदि ने हिस्‍सा लिया। कार्यक्रम का संचालन आनन्‍द ने किया।

(रिपोर्ट-आनंद सिंह, लखनऊ)

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