कश्मीरी पंडितों अपनी औरतों और बच्चियों को यहीं छोड़ दो ,जब कश्मीर के मस्जिदों से हुआ था फतवा जारी

साल 1990 हो या साल 2021 कश्मीर आज भी कश्मीरी पंडितों और अन्य गैर मुस्लिम पंथ के लोगों के लिए महफूज नहीं है।

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साल 1990 हो या साल 2021 कश्मीर आज भी कश्मीरी पंडितों और अन्य गैर मुस्लिम पंथ के लोगों के लिए महफूज नहीं है। कश्मीर से जब अनुच्छेद 370 हटायी गई तो ऐसा लगा कि कश्मीरी पंडितों को अब उनकी खोई हुई पहचान दोबारा मिल जाएगी,ऐसा प्रतीत हुआ कि कश्मीरी पंडित अब अपने घरों को दोबारा लौट सकते हैं लेकिन हाल में ही इस्लामिक चरमपंथियों द्वारा सिर्फ पहचान देखकर की गई कश्मीरी हिन्दुओं और सिखों की हत्याएं हमें फिर से अतीत की घटनाओं को याद करने पर विवश कर रही है।

 1990 का वो मंजर सोच कर दिल सहम सा जाता है:

जब 1990 में कश्मीरी पंडितों या यूं कहें तो कश्मीरी हिन्दुओं को रातोंरात उनके घरो से जबरदस्ती निकलने पर मजबूर किया गया। जब अलगाववादियों और चरमपंथियों ने कश्मीरी हिन्दुओं को उनके मातृभूमि से ये कहकर भागने पर मजबूर कर दिया कि कश्मीर में उन्हें रहना है तो इस्लाम को मानकर चलना होगा। जिस कश्मीर की पहचान कश्मीरी पंडितों से थी उन्हें कट्टरपंथियों ने उन्ही की धरती से निकलने पर विवश कर दिया।

जब मस्जिदों से कश्मीरी पंडितों के खिलाफ फतवा जारी हुआ:

1990 का वो समय जब घाटी की तमाम मस्जिदों से ये नारे लगे थे या यूँ कहे तो आदेश जारी हुआ था कि कश्मीरी पंडितों अगर तुम्हे कश्मीर में रहना है तो ‘निजाम ए मुस्तफा’ मानकर चलना होगा इसका मतलब ये हुआ कि कश्मीर में रहने के लिए इस्लाम को मानना अनिवार्य होगा।

जब नफरत और असहिष्णुता इस स्तर तक बढ़ गयी थी कि मस्जिदों से कश्मीरी पंडितों के लिए ये कहा गया कि वे घाटी से निकल जाएं लेकिन अपनी औरतों और बेटियों को यही छोड़ दें। इस पूरी घटना में कितनी ही हत्याएं हुई ,घरों को लुटा गया औरतों और बच्चियों के साथ बलात्कार हुआ लेकिन एक राष्ट्र के रूप हम मूक बने रहे। जब देश की सरकार कुछ कट्टरपंथियों के आतंक के आगे बौनी नजर आई थी।

जब लाखों कश्मीरी पंडितों को रातोरात अपना सब कुछ छोड़कर भागना पड़ा था। उन्हें अपने देश में ही शरणार्थी की तरह रहना पड़ा और कोई भी न्यायिक व्यवस्था उनके इन्साफ के लिए कुछ न कर सकी। एक धर्मनिरपेक्ष देश के लिए इससे ज्यादा शर्मनाक और क्या रहा होगा।

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आज किसी व्यक्ति को अगर कोई हिंसक भीड़ मार देती है तो एक खास एजेंडे के तहत एक समुदाय के साथ साथ पूरे देश की छवि को खराब करने की कोशिश होने लगती है लेकिन दुःख की बात ये है कि कश्मीर में स्वतंत्र भारत के सबसे बड़े नरसंहार के साथ बड़ी मात्रा में पलायन हुआ लेकिन दुर्भाग्यवश इसके विषय में न कोई कल बात करने वाला था और न ही आज करने वाला है।

क्या कश्मीर आज अल्पसंख्यकों के लिए सुरक्षित है ?

वर्तमान सरकार तो कश्मीर में अल्पसंख्यकों को फिर से बसाने की बात करती है साथ ही साथ उन्हें  सुरक्षा की भी पूर्ण गारंटी देती है लेकिन हाल में घटित इन घटनाओं ने कश्मीर हिन्दुओं और सिखों के मन में फिर से कुछ सवाल पैदा कर दिया है। कश्मीरी पंडितों और सिखों को अब भी उस दिन का इंतजार है जब वो अपनी मातृभूमि में शांतिपूर्ण तरीके से दोबारा लौट सकें।

 

(ये आर्टिकल यूपी समाचार के लिए अभिनव त्रिपाठी ने लिखा है)

 

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