श्रमिकों का दर्दः पेट भरने के लिए बेच डाला अपना कीमती सामान 

बलरामपुरः कोरोना महामारी का असर यदि सबसे ज्यादा किसी पर पडा है तो वे प्रवासी मजदूर (Workers ) है जो रोजी-रोटी के सिलसिले में गाँव छोड महानगरो को गये थे। वापस लौट रहे इन प्रवासी मजदूरो (Workers ) में हर एक की अपनी कहानी है लेकिन हम आपको मिलाते है दो ऐसे नेपाली मजदूरो की जिन्हे अपना पेट पालने और घर वापसी के लिये मोबाइल भी बेंचना पडा।

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नेपाल के रुपनदेई जिले के विश्नापुर गाँव के रहने वाले (Workers ) गोविन्द और विष्णु सात वर्षो से महाराष्ट्र के भिवन्डी में पावरलूम चलाते थे। लॉकडाउन के पहले चरण में इन लोगो ने किसी तरह उसका पालन करते हुये बिताया। लेकिन उसके बाद सेठ ने भी हाथ खडे कर दिये। राशनपानी खत्म हो गया। नेपाल राष्ट्र के होने के कारण इनके पास आधारकार्ड भी नही था जिससे सरकार इन्हे राशन भी नही दे रही थी। जब पेट भरने की आशा धूमिल हुई तो अपना मोबाइल बेंचकर इन लोगो ने अपने घर की राह पकडी और रास्ते में तमाम खट्टे-मीठे अनुभवों से सामना हुआ।

डेढ सौ किलोमीटर की पदयात्रा

भविन्डी से नासिक तक करीब डेढ सौ किलोमीटर की पदयात्रा की फिर नासिक से लखनऊ तक एक ट्रक से पहुँचे। गोण्डा से बलरामपुर तक फिर पैदल चना पडा। रास्ते में पैसे देने पर भी दुकानदारो ने चाय नही दी क्योंकि इन लोगो को कोरोना कैरियर्स के रुप में देखा जा रहा है। चीनी खरीदकर नीबू का शरबत बनाकर पीते हुये ये दोनो जिले की सीमा तक पहुँचे है।

जिले की सीमा पर समाजसेवियों ने इन्हे भरपेट भोजन कराया। इन्हे अपने गन्तव्य तक पहुँचने के लिये अभी भी करीब 200 किलोमीटर की यात्रा करनी है। ये दोनो थककर चूर है फिर भी घर पहुँचने की जल्दी में पैदल ही चल पडते है। अभी इन्हे (Workers ) भारत से नेपाल सीमा में प्रवेश करने की एक और समस्या को भी झेलना है क्योकि तमाम मजदूर सीम पर फँसे है जो नेपाल नही जा पा रहे है।

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(रिपोर्ट- सुजीत कुमार, बलरामपुर)

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