शहरों की हस्ती मिटते देख गांव की बस्ती बचाने को प्रवासियों को करना पड़ा ये…

बलिया– जनपद के भीमपुरा थाना क्षेत्र के कीडीहरापुर गांव में आये आधा दर्जन प्रवासी श्रमिक अपने परिवार व गांव को बचाने के लिए पेड़ो के नीचे रहने को मजबूर है ।

प्रवासी मजदूरों का कहना है कि उनके पास घर में एकांतवास की कोई व्यवस्था नहीं है क्योंकि घर छोटे है और गावँ के परिषदीय विद्यालय या पंचायत भवनों में रहने से गांव के प्रधान द्वारा इनकार कर दिया गया है।ऐसे में श्रमिक पेड़ो के नीचे ही अपना आशियाना बनाकर जीने को मजबूर हैं।

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आमतौर पर सिस्टम ऊपर से नीचे चलता है पर बात कोरोना के खिलाफ चल रही जंग की जाय तो सिस्टम को नीचे से ऊपर चलना होगा। गावँ के स्तर पर प्रवासी मज़दूरों की अनदेखी और ढुलमुल रवैये की एक तस्वीर बलिया जनपद के कीडीहरापुर गांव के रतनपुर मौजा में दिखी जहां कई प्रांतों से अपने गावँ लौटे श्रमिकों को गावँ के बाहर बागीचे में सोने को मजबूर होना पड़ रहा है ।दरसल इन श्रमिकों को होम क्वारन्टीन में रहने को कहा गया था पर घर छोटा होने की वजह से ये परिवार के अन्य सदस्यों की ज़िंदगी खतरे में नही डालना चाहते थे । ऐसे में प्रवासी श्रमकों ने गावँ के प्रधान से प्राथमिक विद्यालय या फिर पंचायत भवन में ठहरने की गुहार लगाई तो ग्राम प्रधान ने इनकार कर दिया।

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जबकि जिलाधिकारी का निर्देश है कि जिन्हें होम क्वारन्टीन में दिक्कत है वो गववन के स्कूल में भी राह सकते है ऐसे में इन श्रमिको ने परिवार और गावँ की सुरक्षा के लिए बागीचे को ही अपना आशियाना बना दिया।श्रमिको का कहना है कि शहर की बर्बादी तो देख लिया है अब अपने गावँ की बस्ती बर्बाद नही होने देंगे चाहे उन्हें चिलचिलाती धूप में क्यों न जीना पड़े ।पर मामले ने सिस्टम के निचले पायदान की उस हकीकत को भी सामने ला दिया जहां प्रवासी श्रमकों की मदद के बजाय उन्हें उनके ही हाल पर छोड़ देने को ही कुछ लोग अपना कर्तव्य मानते है।

(रिपोर्ट-मनोज चतुर्वेदी,बलिया)

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