कानपूर शूटआट से पहले भी खाकी की दगाबाजी से गई थी 9 पुलिसकर्मियों की जान

दस्यु छविराम सिंह द्वारा किये गए हत्याकांड से उस समय थर्रा गई थी उत्तर प्रदेश पुलिस...

कानपुर के बिकरू गाँव में 8 पुलिस कर्मियों के हत्याकांड से पूरा उत्तर प्रदेश थर्रा गया है। ये घटना प्रदेश में कोई पहली बार नहीं हुई है इससे पहले भी चार दशक पूर्व ऐसी ही घटना सात अगस्त 1981 में जनपद एटा के अलीगंज थाना क्षेत्र के नाथुआपुर गांव में घटित हो चुकी है।

जिसमे दस्यु सरगना छविराम सिंह से दिनदहाड़े पुलिस के साथ हुई मुठभेड़ में अलीगंज कोतवाल सहित 9 पुलिस के जवानों सहित तीन ग्रामीण सहादत, वीरगति को प्राप्त हुए थे, एटा से आर.बी.द्विवेदी की देखें ये खाश रिपोर्ट…

9 पुलिसकर्मियों की हुई थी हत्या…

दरअसल ये पूरा मामला जनपद एटा के थाना अलीगंज क्षेत्र के गाँव नाथुआपुर में 4 दशक पूर्व का है, सात अगस्त सन 1981 को नाथुआपुर गांव में डकैतों के सरदार छविराम सिंह के साथ हुई पुलिस मुठभेड़ में अलीगंज कोतवाल सहित 9 पुलिस कर्मियों और तीन ग्रामीणों को गोली लगने से शहीद हो गए थे।

उस समय प्रदेश में बीपी सिंह सरकार थी समूचे प्रदेश में डकैत छविराम सिंह का जबरदस्त आतंक था और समूचे प्रदेश में वो उस समय ख़ौफ़ का पर्याय बना हुआ था। जनपद एटा दस्यु छविराम की शरण स्थली मानी जाती थी जिसके चलते प्रदेश सरकार ने जनपद के अलीगंज इलाके में जगह -जगह पुलिस बल कैम्प बनाये हुए थे।

बता दें कि अलीगंज के तत्कालीन थानाध्य्क्ष राजपाल सिंह एक वीर की भांति थे और उस समय जनपद में दस्यु छविराम सिंह का जबरदस्त आतंक था उसको लेकर राजपाल सिंह ने छबिराम को अपने हाथों से अपने मन मे ही मारने की कसम उठाली थी और 7 अगस्त 1981 का दिन उत्तर प्रदेश पुलिस के लिए खाश दिन इसलिए और बना क्योंकि इस दिन का अलीगंज तत्कालीन थाना इंचार्ज राजपाल सिंह को बेसब्री से इंतजार था।

कई घंटे चली थी गोलियां…

बताया जा रहा है कि दिवंगत शहीद इंस्पेक्टर राजपाल सिंह ने दस्यु सरगना छविराम को मारने की कसम खाते हुए डकैत छविराम के इर्दगिर्द मुखबिरों का एक बड़ा जाल बिछा दिया था, क्योंकि उस समय आज की भांति मोबाइल नेटवर्क नही था तब पुलिस के पास मुखीबिर ही एक मात्र सूत्र या तंत्र था। वही मुखबिर की सूचना मिली कि नाथुआपुर गाँव मे दश्यू छविराम सिंह अपने 70 साथियों के साथ आने की सूचना पर इंस्पेक्टर राजपाल सिंह अपने साथियों के साथ नाथुआपुर गांव जा पहुंचे और डकैतों को ललकारते हुए बदमाशो के गिरोह के साथ मुठभेड़ हो गई

जिसमे कई घंटो तक पुलिस और बदमाशो के बीच हजारों राउंड गोलियां चली जिसमेँ पुलिस के पास गोलियां कम पड़ गई और किसी ने बदमाशो को पुलिस के पास गोलियां खत्म होने की सूचना दे दी जिसके चलते डकैत छविराम के गिरोह ने पुलिस टीम को चारों तरफ से घेराबंदी कर इंस्पेक्टर राज पाल सिंह सहित नौ पुलिसकर्मियों की नृशंस हत्या कर दी जिसमे तीन ग्रामीण भी शामिल थे।

1981 भी चंद पुलिसकर्मियों ने किया था घिनौना काम

वही यदि स्थानीय लोगों की मानें तो गोली खत्म की सूचना भी किसी पुलिस कर्मी के माध्यम से ही डकैतों को मिली,अभी कानपुर के बिकरू गांव में हुई पुलिस हत्याकांड घटना ने नाथुआपुर पुलिस हत्याकांड की याद ताजा कर दी है। वही हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे द्वारा किये गए जघन्य अपराध नें डकैत छविराम की याद दिला दी ।तत्कालीन मुख्यमंत्री बी पी सिंह ने 1981 में हुई इस घटना को चुनैती मानते हुए डकैत छविराम के खात्मे की योजना बनाई और दो बर्ष के अंतराल में उत्तर प्रदेश पुलिस ने डकैत छविराम का एनकाउंटर कर प्रदेश को भयमुक्त कराया।

विकास दुबे की तलाश में पुलिस की 100 टीमें लगी

गौरतलब है कि प्रदेश के अलग,अलग जनपदों में आज भी पुलिस पर लगातार जानलेवा हमले हो रहे है। 4 दशक पूर्व 07 अगस्त 1981 में भी एटा जनपद में भी दुर्दांत डकैत छविराम ने मुठभेड़ में 09 पुलिस कर्मियों की गोली मारकर हत्या कर दी थी जिसमे 3 ग्रामीणों सहित 12 लोग शहीद हुए थे।

वही कानपुर वाले पुलिस हत्याकांड से पूरा प्रदेश दहल गया जी सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सरकार ने बदमाशो के होशले नेस्तानाबूत कर प्रदेश को भय मुक्त करने की ठानी है, वही प्रदेश में 8 पुलिस कर्मियों के हत्यारों को प्रदेश की 100 पुलिस टीमें उसकी तलाश में जुटी हुई है जिसे जल्द गिरफ्तार कर उसे सजा दिलाना है।

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(रिपोर्ट- आर.बी. द्विवेदी, एटा)

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