Mahashivratri 2023: पूरे रीति-रिवाज से हुआ बाबा विश्वनाथ और मां गौरा का विवाह

महाशिवरात्रि (mahashivratri-2023) पर्व पर शनिवार को दुल्हा बने बाबा श्रीकाशी विश्वनाथ की पंचबदन रजत प्रतिमा और माता गौरा की रजत प्रतिमा का दुल्हन के रूप में राजसी श्रृंगार(वर-वधु) के रूप में किया गया। काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत डॉ कुलपति तिवारी के टेढ़ीनीम स्थित आवास पर साढ़े तीन सौ वर्ष से चली आ रही लोकपरंपरा के अनुसार विशेष पूजन किया गया।

बंसत पंचमी पर बाबा के तिलकोत्सव और परंपरानुसार शिव-विवाह के लिए विजया एकादशी को तेल-हल्दी की रस्म के बाद दूल्हा बने बाबा विश्वनाथ की प्रतिमा को सेहरा बांधा गया। वहीं, माता गौरा मथुरा से मंगवायी गई खास लाल लहंगे में सजीं। महंत आवास पर ही बाबा के विवाह की प्रक्रिया पूरी हुई। लोकपरंपरा के अनुसार महंत डॉ. कुलपति तिवारी ने बाबा व गौरा की प्रतिमा की सायंकाल विवाह की परंपरा का निर्वहन कर आरती की। इसके पहले सुबह ब्रह्म मुहूर्त में प्रतिमाओं का रुद्राभिषेक किया गया। पं. वाचस्पति तिवारी ने सपत्नीक रुद्राभिषेक किया।

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दोपहर में फलाहर का भोग लगाया गया। भोग आरती के बाद संजीव रत्न मिश्र ने बाबा एवं माता की चल प्रतिमा का राजसी श्रृंगार कर विशेष आरती उतारी। दोपहर में मातृका पूजन से लेकर विवाह तक की परंपरा का निर्वाह हुआ। इसके बाद करीब चार सौ साल पुराने स्फटिक के शिवलिंग को आंटे से चैक पूर कर पीतल की परात में रखा गया। इसके बाद पारंपरिक वैवाहिक गीतों की गूंज के बीच महंत पं. कुलपति तिवारी के सानिध्य में मातृका पूजन किया गया। सायंकाल मंगलगीतों के साथ वैवाहिक परंपरा की शुरुआत हुई। इस मौके पर उपस्थित श्रद्धालु महिलाओं ने मंगल गीत गाकर माहौल भक्तिमय कर दिया।

मंगलगान के बीच वैदिक ब्राह्मणों द्वारा मंत्रोच्चार के बीच सभी देवी-देवताओं से शिव के विवाह में शामिल होने का अनुरोध किया। बाबा की प्रतिमा का विवाहोत्सव महंत-आवास टेढीनीम में मनाया गया। महंत डॉ. कुलपति तिवारी ने बताया कि बाबा और गौरा के रजत प्रतिमाओं के साथ सभी निजी प्रतिमाओं की पूजा अर्चना के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए। महेंद्र प्रसन्ना ने शहनाई की मंगल ध्वनि की। कार्यक्रम के बाद रात्रि मे मंदिर में चारों प्रहर की विशेष आरती पं. शशिभूषण त्रिपाठी गुड्डू महाराज ने संपन्न कराई। महंत ने बताया कि 3 मार्च को रंगभरी (अमला) एकादशी पर माता के गौना की रस्म निभाई जाएगी।

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