Diwali Mahaparv 2023: इस बार 6 दिनों का होगा दीपावली का त्यौहार, कल धनतेरस के साथ होगी महापर्व की शुरूआत

Diwali 2023: कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर दिवाली का त्योहार मनाया जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक अमावस्या तिथि पर भगवान श्री राम 14 वर्षों का वनवास काटकर और लंका पर विजय करने के बाद अयोध्या लौटे थे. इस खुशी में सारे अयोध्यावासी इस दिन पूरे नगर को अपने राजा प्रभु राम के स्वागत में दीप जलाकर उत्सव मनाया था. तब से ही ये परंपरा चली आ रही है.

ज्योतिषाचार्य ने बताया कि तिथियों के भुग्त भोग्य यानि घटने बढ़ने के कारण इस बार पांच दिनों का दिवाली महापर्व 6 दिनों का होगा. दिवाली महापर्व की शुरुआत 10 नवंबर को धनतेरस से होगी. छोटी दीपावली या रूप चौदस रविवार 12 नवंबर 2023 और दीपावली रविवार 12 नवंबर 2023, अन्नकूट व गोवर्धन पूजा मंगलवार 14 नवंबर 2023 और भैयादूज बुधवार 15 नवंबर 2023 के साथ ही इस महापर्व का सामापन हो जाएगा.

इस साल धनतेरस की तिथि पर प्रीति योग बन रहा है. यह योग शाम 05:06 बजे के बाद बन रहा है. यह योग पूरी रात रहेगा. इस योग में पूजा करने से साधक को अनंत फल की प्राप्ति होगी. यह अवधि खरीदारी के लिए भी अच्छी है. इस योग में शुभ कार्य भी किए जा सकते हैं.

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10 नवंबर को धनतेरस महापर्व की शुरुआत

धनतेरस जिसे धन त्रयोदशी और धन्वंतरि जयंती भी कहते हैं, पांच दिवसीय दिवाली का पहला दिन होता है. धनतेरस के दिन से दिवाली का त्योहार प्रारंभ हो जाता है. मान्यता है इस तिथि पर आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि समुद्र मंथन से अमृत कलश लेकर प्रगट हो हुए थे. इसी कारण से हर वर्ष धनतेरस पर बर्तन खरीदने की परंपरा निभाई जाती है. इसी दिन से देवता यमराज के लिए दीपदान से दीप जलाने की शुरुआत होगी और पांच दिनों तक दीप जलाए जाएंगे.

ज्योतिषाचार्य ने बताया कि चतुर्दशी तिथि को भगवान विष्णु ने माता अदिति के आभूषण चुराकर ले जाने वाले निशाचर नरकासुर का वध कर 16 हजार कन्याओं को मुक्ति दिलाई थी. इसे शारीरिक सज्जा और अलंकार का दिन भी माना गया है. इसे रूप चतुर्दशी भी कहा जाता है. इस दिन महिलाएं ब्रह्म मुहूर्त में हल्दी, चंदन, सरसो का तेल मिलाकर उबटन तैयार कर शरीर पर लेप कर उससे स्नान कर अपना रूप निखारेंगी. नरक चतुर्दशी कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है.

नरक चतुर्दशी छोटी दिवाली

नरक चतुर्दशी को कई और नामों से भी मनाया जाता है जैसे- नरक चौदस, रूप चौदस और रूप चतुर्दशी आदि. दिवाली से पहले मनाए जाने के कारण इसे छोटी दीपावली भी कहा जाता है. इस दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा होती है. घर के कोनों में दीपक जलाकर अकाल मृत्यु से मुक्ति की कामना की जाती है.

12 को दिवाली पर होगा लक्ष्मी-गणेश पूजन

दिवाली की शाम को शुभ मुहूर्त में माता लक्ष्मी, भगवान गणेश, मां सरस्वती और धन के देवता कुबेर की पूजा-आराधना होती है. मान्यता है दिवाली की रात माता लक्ष्मी पृथ्वी पर आती हैं और घर-घर जाकर ये देखती हैं किसका घर साफ है और किसके यहां पर विधिविधान से पूजा हो रही है. माता लक्ष्मी वहीं पर अपनी कृपा बरसाती हैं. दिवाली पर लोग सुख-समृ्द्धि और भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए माता लक्ष्मी की विशेष पूजा करते हैं. अथर्ववेद में लिखा है कि जल, अन्न और सारे सुख देने वाली पृथ्वी माता को ही दिवाली के दिन भगवती लक्ष्मी के रूप में पूजा जाता है.

14 नवंबर को गोवर्धन पूजा

बता दें कि गोवर्धन पूजा को अन्नकूट भी किया जाता है. इस त्योहार में भगवान कृष्ण के साथ गोवर्धन पर्वत और गायों की पूजा का विधान है. इसी दिन भगवान कृष्ण को 56 भोग बनाकर लगाया जाता है. दिवाली के अगले दिन राजा बली पर भगवान विष्णु की विजय का उत्सव है. ऋग्वेद में उल्लेख है कि भगवान विष्णु ने वामन रूप धरकर तीन पदों में सारी सृष्टि को नाप लिया था.

15 नवंबर को भाईदूज

ज्योतिषाचार्य ने बताया कि भाई दूज पांच दिवसीय दिवाली पर्व का आखिरी दिन का त्योहार होता है. इस दिन बहनें अपने भाईयों के माथे पर तिलक लगाकर उनकी लंबी आयु और सुख-समृद्धि की मनोकामनाएं मांगती हैं. इस त्योहार को भाई दूज या भैया दूज, भाई टीका, यम द्वितीया, भ्रातृ द्वितीया कई नामों से जाना जाता है. भविष्य पुराण में लिखा है कि इस दिन यमुना ने अपने भाई यम को अपने घर पर भोजन करने के लिए आमंत्रित किया था. कल्याण और समृद्धि के लिए भाई को इस दिन अपनी बहन के घर में ही स्नेहवश भोजन करना चाहिए.

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