यूँ ही नहीं होते लाल-नीले ट्रेन के डिब्बे, वजह जान कर रह जायेंगे दंग

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नई दिल्ली: हम सब ज़िन्दगी में कभी न कभी एक बार ज़रूर ट्रैन में बैठे होंगे। उसकी छुक- छुक आवाज़ से तो हम सभी वाक़िफ़ हैं। मगर हम में से कितनो ने ये गौर किया है कि ट्रैन के डिब्बों का रंग अक्सर ब्लू या रेड ही क्यों होता है? तो आज हम आपको बताते हैं की इसके पीछे क्या वजह है।

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सबसे पहले आप ये जाने के इन विभिन्न रंगों के डिब्बों को कहते क्या हैं। असल में नीले रंग के कोच के ‘इंटीग्रल कोच फैक्ट्री’ में बनने के कारण इसे ‘Integral Coach Factory’ या ‘ICF’ के नाम से भी जाना जाता है, वहीं लाल और सिल्वर रंग के कोच को ‘LHB’ यानि ‘Linke-Hofmann-Busch’ कहा जाता है।

लाल और सिल्वर रंग के कोच तेज स्पीड से पहुंचते हैं मंज़िल तक:

LHB कोच या यूँ कहें की लाल और सिल्वर रंग के कोच का इस्तेमाल तेज गति की ट्रेनों जैसे ‘शताब्दी एक्सप्रेस’, ‘गतिमान एक्सप्रेस’ और ‘राजधानी एक्सप्रेस’ आदि में किया जाता है। इन ट्रेंस की सामान्य गति 160 किलोमीटर से 200 किलोमीटर/घंटा होती हैं।

नीले रंग के कोच को धीरी गति के लिए किया जाता है यूज़:

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ICF यानि नीले रंग के कोच की सामान्य गति 70 किलोमीटर से 140 किलोमीटर/घंटा होती हैं, और ये यात्रियों को सफर का पूरा लुत्फ़ लेते हुए अपने तये समय पर पहुँचाने के लिए जानी जाती है।

रंगो के अलावा टेक्नोलॉजी में भी अलग हैं दोनों कोच:

रंगो के अलावा इन कोचेस में बनावट और टेक्नोलॉजी के आधार पर भी काफी फ़र्क़ है। जहाँ LHB कोच के डिब्बे एल्युमिनियम तथा स्टेलनेस स्टील एंटी टेलीस्कोपिक सिस्टम के द्वारा बनाए जाते हैं वहीं अगर ICF कोच को बनाने में माइल्ड स्टील का प्रयोग किया जाता है। ये कोच बड़े झटके भी बड़ी आसानी से सेह लेते है। जिसकी वजह से एक्सीडेंट कि संभावनाएं बहुत ही कम हो जाती है। जबकि LHB कोच में डिब्बों को जल्दी रोकने के लिए डिस्क ब्रेक लगाए जाते हैं और ये आसानी से पटरी से भी नहीं उतरते।

जैसा कि हमने पहले ही जाना कि LHB यानि Linke-Hofmann-Busch कोच का प्रयोग देश की तेज रफ़्तार ट्रेनो जैसे ‘गतिमान एक्सप्रेस’, ‘शताब्दी एक्सप्रेस’ और ‘राजधानी एक्सप्रेस’ में किया जाता है। ये कोच एसी, नॉन एसी, स्लीपर जैसी कई सुविधाओं से भी लैस होते हैं। ये कोच न सिर्फ काफी सुरक्षित होते हैं बल्कि इनके दुर्घटनाग्रस्त होने की आशंका भी काफी कम रहती है।

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वहीं अगर व्हील की बात करें तो LHB का व्हील ICF कोच से छोटा होता है, जोकि ज्यादा स्पीड पर भी ट्रेन को संयमित रख होने वाली दुर्घटनाओं की संभावनाओं को कम करता है। एक और चीज़ है जो LHB कोच को ICF कोच से अलग करती है। अगर बात हो मेंटेनेंस की तो LHB को 5 लाख किलोमीटर चलने के बाद ही रिपेयर कि जरुरत होती है, लेकिन ICF कोच में रिपेयर की जरूरत 2 से 4 लाख किलोमीटर चलने के बाद ही पड़ जाती है।

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