यूपी में इस बार ये तय करेंगे बसपा एवं कांग्रेस का चुनावी भविष्य…

यूपी की सियासत में शह और मात का खेल शुरू

यूपी की सियासत में शह और मात का खेल शुरू हो गया है। हालाँकि अभी यूपी चुनाव बहुत दूर है लेकिन सियासी दलों ने चुनावी बिसात बिछाने के लिए अपने चुनावी तरकश से तीर चलाने प्रारंभ कर दिए है।

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मोदी की भाजपा को छोड़ कांग्रेस ,बसपा एवं सपा के वोटों को चुनावी ख़ज़ाने में समेटने के लिए उनके निशाने पर मोदी की भाजपा की योगी आदित्यनाथ सरकार तो है ही साथ ही वह यह नाप तौल रहे कि आगामी 2022 का विधानसभा चुनाव किसके सहारे जीता जा सकता है इस लिए वह कोई मौक़ा नही छोड़ना चाहते जिससे उनके वोटबैंक में इज़ाफ़ा होता हो ज़ाहिर सी बात है सियासत में इसको बुरा भी नही समझा जाता क्योंकि सबका लक्ष्य सत्ता पाना होता है जो ग़लत भी नही है सियासी दल होते ही इस लिए है।आठ पुलिस वालों की हत्या करने वाला विकास दूबे डायरेक्ट तो नही लेकिन किन्तु परन्तु कर आजकल सियासी दलों का दुलारा बना हुआ है।

सियासी दलों के नेताओं के किन्तु परन्तु का ब्राह्मण समाज भी उनकी हाँ में हाँ मिला रहा है ये बहस अलग है कि वह सही है या ग़लत हमारा मक़सद किसी को ग़लत या सही का सर्टिफिकेट देना नही है और होना भी नही चाहिए उनके अपने तर्क है कि हमारे समाज का उत्पीडन हो रहा है जो सही भी हो सकता है और ग़लत भी।ख़ैर हम बात कर रहे थे सियासी दलों के आगामी विधानसभा चुनाव 2022 की तैयारियों की फ़िलहाल तीन वोटबैंक ऐसे है जिनको सियासी दल अपने-अपने पाले में लाने के प्रयास में जुटे हैं मुसलमान , ब्राह्मण और दलित कांग्रेस का लक्ष्य मुसलमान , ब्राह्मण और दलित तीनों को वापिस कांग्रेस में लाने का है। इसके लिए वह जी-तोड़ प्रयास कर रही है देखा जाए तो मुसलमान को कहा जा सकता है कि वह कांग्रेस की तरफ़ मूव कर जाए यूपी का मुसलमान सपा की लीपा-पोती से थक चुका है और वह कांग्रेस का पूर्व में वोटर भी रहा है इससे इंकार नही किया जा सकता है।

यही बात ब्राह्मणों पर भी लागू होती है वह भी उसका मूल वोटबैंक हुआ करता था। वह तो हिन्दू मुसलमान के मकड़जाल में फँस कर अपनी पार्टी को छोड़ भटकता फिर रहा है। कभी वह बसपा का तारण हार बन जाता है तो कभी वह मोदी की भाजपा की चुनावी नाव में सवार हो उसकी नय्या पार लगा देता है परन्तु कांग्रेस के बाद उसका कोई स्थायी सियासी आवास नही बन पाया है। इसलिए कहा जा सकता है कि शायद वह अपने सियासी स्थायी घर की तलाश में है और ऐसा हो भी सकता है कि वह कांग्रेस के घर में प्रवेश कर जाए लेकिन दलितों को लेकर फ़िलहाल क़यास भी नही लगाए जा सकते है क्योंकि दलितों पर बसपा का जादू सर चढ़कर बोलता है ।

यही वजह है कि दलितों के वोटबैंक में सेंधमारी की बात सियासी गुणाभाग के पंडितों की समझ में नही आती। हाँ यह बात अलग है कि प्रयास सियासी दल करते ही है कामयाबी मिलती है या नही यह सब चुनाव के बाद में समीक्षा का विषय है दलित भी बसपा से पूर्व कांग्रेस का ही वोटबैंक रहा है।

(रिपोर्ट-तौसीफ़ क़ुरैशी, लखनऊ)

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