लखनऊ के इस मंदिर में घुंघरूओं से होती है पूजा, यहीं से धुरंधरों ने सीखा कथक का ककहरा

घुंघरुओं में परंपरा का पूजन कर सुरों के राजा से कला, संगीत और साधना का आशीर्वाद मांगा जाता है.

लखनऊ–आज मार्गशीर्षकृष्ण पक्ष की उदया तिथि सप्तमी मंगलवार को सप्तमी तिथि आज दोपहर 02 बजकर 36 मिनट तक रहेगी उसके बाद अष्टमी तिथि शुरू होने पर आज श्री महाकाल भैरव अष्टमी मनायी जा रही है।

धार्मिक मान्यता है कि आज, यानी मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी को काल भैरव की उत्पत्ति हुई थी। काल भैरव भगवान शिव का ही एक रूप हैं। आज के दिन शाम के समय भैरव दर्शन-पूजन करने का विधान है। कलियुग के देवता श्री भैरव नाथ अपने भक्तों पर बड़ी जल्दी कृपालु हो जाते हैं। आज के दिन श्री भैरव की उपासना करने से व्यक्ति को शीघ्र ही कर्ज से, नकारात्मकता से, शत्रुओं से और मुकदमे के साथ ही भय, रोग आदि से भी छुटकारा मिलता है। साथ ही जीवन में विजय मिलती है। काल भैरव की कृपा से हर तरह की परेशानी से छुटकारा के साथ ही और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। अतः आज के दिन श्री भैरवनाथ की उपासना अवश्य ही करनी चाहिए। सभी शक्तिपीठों के पास भैरव के जागृत मन्दिर जरूर होते हैं। इनकी उपासना के बिना मां दुर्गा के स्वरूपों का पूजन अधूरा माना जाता है। हिन्दू और जैन दोनों भैरव की पूजा करते हैं।

मान्यताओं के अनुसार इनकी कुल गिनती 64 है। धर्मग्रंथों के अनुसार शिव के रक्त से दो प्रकार के भैरव उत्पत्ति हुए हैं- काल भैरव और बटुक भैरव। देश में काल भैरव के सबसे जागृत मन्दिर उज्जैन और काशी में हैं, जबकि बटुक भैरव का मन्दिर लखनऊ में है। लखनऊ शहर के व्यस्ततम क्षेत्र केसरबाग में बटुक भैरव का सैकड़ों वर्ष पुराना मन्दिर है। बटुक भैरव को लक्ष्मणपुर का रक्षपाल कहा जाता है।

माना जाता है कि बटुक भैरव सुरों के राजा हैं, इसलिए यहां मांगी जाने वाली मन्नत भी कला, संगीत और साधना से जुड़ी होती है। बटुक भैरव से आशीर्वाद लेकर लखनऊ कथक घराने के धुरंधरों ने अपने पैरों में घुंघरू बांध कथक शिक्षा का ककहरा यहीं सीखा था। बटुक भैरव मन्दिर में बाल रूप में विराजमान बटुक भैरव की मूर्ति 1000-1100 वर्ष पुरानी है। गोमती नदी तब मन्दिर के करीब से बहती थी और पास ही श्‍मशान भी था।

temple of Batuk Bhairav
Comments (0)
Add Comment