शारदीय नवरात्रि 2020 : देवी शैलपुत्री को समर्पित है पहला दिन…

शनिवार से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है। शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि माता भगवती की आराधना, संकल्प, साधना और सिद्धि का दिव्य समय है। यह तन-मन को निरोग रखने का सुअवसर भी है।

नवरात्रि में देवी के नौ रूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। नवरात्रि का प्रत्येक दिन देवी मां के विशिष्ठ रूप को समर्पित होता है और हर स्वरुप की उपासना करने से अलग-अलग प्रकार के मनोरथ पूर्ण होते हैं।

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पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा-

मां दुर्गा अपने पहले स्वरुप में ‘शैलपुत्री’ के नाम से पूजी जाती हैं। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है। इस दिन पीला रंग पहनना शुभ माना जाता है। इसीलिए नवरात्रि की शुरुआत पीले रंग के कपड़ों से करें। अपने पूर्व जन्म में ये प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में उत्पन्न हुई थीं तब इनका नाम सती था।

इनका विवाह भगवान शंकर से हुआ था। एक बार प्रजापति दक्ष ने बहुत बड़ा यज्ञ किया जिसमें उन्होंने सारे देवताओं को अपना-अपना यज्ञ भाग प्राप्त करने के लिए निमंत्रित किया किंतु भगवान शंकर को उन्होंने इस यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया।

राज दक्ष ने किया था विशाल यज्ञ का अनुष्ठान

देवी सती ने जब सुना कि उनके पिता एक अत्यंत विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं, तब वहां जाने के लिए उनका मन विकल हो उठा। अपनी यह इच्छा उन्होंने भगवान शिव को बताई।

भगवान शिव ने कहा- ‘प्रजापति दक्ष किसी कारणवश हमसे रुष्ट हैं, अपने यज्ञ में उन्होंने सारे देवताओं को निमंत्रित किया है किन्तु हमें जान-बूझकर नहीं बुलाया है। ऐसी स्थिति में तुम्हारा वहां जाना किसी प्रकार भी श्रेयस्कर नहीं होगा।’

भगवान शंकर ने जाने से रोका था

भगवान शंकर के इस उपदेश से देवी सती का मन बहुत दुखी हुआ लेकिन वहां जाकर माता और बहनों से मिलने की उनकी व्यग्रता किसी प्रकार भी कम न हो सकी। उनका प्रबल आग्रह देखकर शिव ने उन्हें वहां जाने की अनुमति दे दी।

सती ने पिता के घर पहुंचकर देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम से बातचीत नहीं कर रहा है। केवल उनकी माता ने ही स्नेह से उन्हें गले लगाया। परिजनों के इस व्यवहार से देवी सती को बहुत दुख पहुंचा।

उन्होंने यह भी देखा कि वहां भगवान शिव के प्रति तिरस्कार का भाव भरा हुआ है। दक्ष ने उनके प्रति कुछ अपमानजनक वचन भी कहे। यह सब देखकर सती का ह्रदय ग्लानि और क्रोध से संतप्त हो उठा।

भगवान शिव का नहीं सहन कर सकीं अपमान-

उन्होंने सोचा कि भगवान शंकर जी की बात न मानकर यहां आकर मैंने बहुत बड़ी गलती की है। वह अपने पति भगवान शिव के इस अपमान को सहन न कर सकीं।

उन्होंने अपने उस रूप को तत्काल वहीं योगाग्नि द्वारा जलाकर भस्म कर दिया। वज्रपात के समान इस दारुणं-दुखद घटना को सुनकर शंकर जी ने क्रुद्ध हो अपने गणों को भेजकर दक्ष के उस यज्ञ का पूर्णतः विध्वंस करा दिया। सती ने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया।

इस बार वह शैलपुत्री नाम से विख्यात हुईं। पार्वती, हेमवती भी उन्हीं के नाम हैं। इस जन्म में भी शैलपुत्री देवी का विवाह भी भगवान शंकर से ही हुआ।

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