कोरोना काल में वरदान बना आयुर्वेद, घरों में लोकप्रिय हुआ काढ़ा और गिलोय

पिछले दो सालों में महामारी ने लोगों को आर्थिक रूप से बहुत नुकसान पहुंचाया है। दवाई और हॉस्पिटल्स के खर्चों ने लोगों को कर्ज में डुबो दिया, लेकिन इस संकट की घड़ी में आयुर्वेद ने लोगों को जीने की एक नई राह दिखाई। भारत में लोगों ने अपनी जड़ों की तरफ वापसी कर ली है और शुद्ध जीवनशैली को तेजी अपना रहे हैं। आयुर्वेद ने महामारी के दौरान मजबूत जगह बना ली है और दवा की पसंदीदा शक्ल के तौर पर बढ़ोत्तरी जारी है। अब हर कोई आयुर्वेद की महत्ता को स्वीकार कर रहा है।

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कोरोना ने जब देश में पांव पसारना शुरू किया और लोग घरों में कैद हो गए, तो चिकित्सकों ने हर्ड इम्यूनिटी को ही बचाव का सबसे उत्तम तरीका बताया। वैसे पूरी दुनिया में भारत के लोगों की इम्यूनिटी को काफी अच्छा माना जाता है, लेकिन कोरोना के आगे यह फीकी पड़ गयी। हमारे चिकित्सक व ऐलोपैथी जहां कोरोना मरीजों को रिकवर करने व वैक्सीन बनाने में जुटे हुए थे, वहीं हमारी प्राचीन विधा आयुर्वेद ने लोगों के प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करने का बीड़ा उठाया।

आयुर्वेद में इम्यूनिटी बढ़ाने वाले तमाम ऐसे उत्पाद उपलब्ध

आयुर्वेद में इम्यूनिटी बढ़ाने वाले तमाम ऐसे उत्पाद उपलब्ध हैं, जो सभी प्रकार के स्वास्थ्य समस्याओं में फायदा पहुंचाने वाले माने जाते हैं। आयुर्वेदिक काढ़ा कोरोना संक्रमण काल में हिट साबित हुआ और अचानक इसकी मांग में भारी उछाल आ गयी। लोगों को इसका बहुत फायदा हुआ और इसने इम्यूनिटी बनाने में मदद की व बाहरी फैक्टर से लड़ने की शरीर को ताकत दी। वर्तमान में भी काढ़ा लाखों भारतीयों के जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गया है और लोग अपनी इम्यूनिटी को बढ़ाने के लिए प्रतिदिन इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। इसी तरह गिलोय का भी महत्व बढ़ा।

गिलोय को इम्युनिटी बूस्टर कहा जाता है। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने का काम करता है। वायरस से होने वाली बीमारियों में आपके शरीर की रक्षा करता है। इसमें पाए जाने वाले औषधीय गुण सर्दी-जुकाम से भी बचाते हैं। सर्दी-जुकाम के समय तुलसी के पत्तों के साथ गिलोय के डंठल को पानी के साथ गर्म करके पीने से यह बिल्कुल ठीक हो जाता है। पहली व दूसरी लहर के समय व वर्तमान में भी घरों में इसका खूब प्रयोग हो रहा है। इसके अलावा काली मिर्च, अश्वगंधा, तुलसी आदि का भी लोगों ने जमकर उपयोग किया और इसके महत्व को भली-भांति समझा।

होम्योपैथी की तरफ भी बढ़ा रूझान

कोरोना महामारी के दौरान होम्योपैथी का महत्व भी काफी बढ़ा। यह सस्ती चिकित्सा पद्धति है और बीमारियों को जड़ से खत्म करती है। यह पद्धति बहुत अच्छा असर दिखाती है, साथ ही गंभीर एवं असाध्य रोगों में भी इसके बहुत अच्छे परिणाम प्राप्त मिलते हैं। कोरोना की दूसरी लहर में ऑक्सीजन की कमी के दौरान डॉक्टर्स ने सबसे ज्यादा होम्योपैथी का ही सहारा लिया था, जिसका परिणाम भी सकारात्मक आया। आयुष मंत्रालय के द्वारा शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए होम्योपैथी दवाओं के सेवन की सलाह देने के बाद से लोगों का इस चिकित्सा पद्धति में विश्वास बढ़ा है।

अब लोग हर तरह के रोग के इलाज में होम्योपैथी चिकित्सा का इस्तेमाल कर रहे हैं। इस चिकित्सा पद्धति में विश्शस करने वाले मरीजों की संख्या दोगुना तक बढ़ी है। सही समय पर रोग की पहचान कर ली जाए, तो गंभीर से गंभीर रोगों का इलाज होम्योपैथीकि मेडिसिन से संभव है। होम्योपैथी दवा बीमार व्यक्ति को न सिर्फ ठीक करती है, बल्कि यह पद्धति बेहद सस्ती भी है। ये दवाएं शरीर पर किसी भी प्रकार का नकारात्मक प्रभाव नहीं डालती।

योग ने बनाया निरोग

भारत की प्राचीन संस्कृति में योग का महत्व सदियों से है और हमारे देश ने इसका लोहा भी मनवा दिया है। भारत के ही प्रस्ताव पर 21 जून को प्रति वर्ष अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है। कोरोना ने जब चीन के बाद पूरी दुनिया में पांव पसारा, तो लोगों ने योग को खूब महत्व दिया। घरों में कैद हुए लोगों ने अपनी इम्यूनिटी बढ़ाने के साथ-साथ डिप्रेशन से बचने के लिए योग-ध्यान का सहारा लिया और लोगों को इसका भरपूर लाभ मिला।

कोरोना की दूसरी लहर ने जब भारत में तबाही मचाई और सांसों पर संकट खड़ा हो गया, तो योग ने लोगों को नया जीवन दिया। लोगों ने कपालभांति, अनुलोम-विलोम, धनुषासन, भुजंगासन, मत्स्यासन, सुखासन आदि योग के तरीकों को अपनाकर न सिर्फ अपने फेफड़ों को मजबूत किया, बल्कि ध्यान लगाकर डिप्रेशन से भी निजात पाई। कोरोनाकाल के साथ ही अब योग लोगों के नियमित जीवनशैली का अहम हिस्सा बन गया है।

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