जलियांवाला बाग नरसंहार की 100वीं बरसी आज

न्यूज़ डेस्क–आज यानी 13 अप्रैल के दिन ही साल 1919 में अंग्रेजों ने बेकसूर भारतीय नागरिकों का खून बहाया था. अमृतसर, पंजाब में स्थित जलियांवाला बाग क्रांतिकारियों के खून से भर गया था.

निहत्थे भारतीय प्रदर्शनकारियों पर अंधाधुंध गोलियां चलाई गई थीं और हत्यारी ब्रिटिश सेना की उस टुकड़ी का नेतृत्व जनरल माइकल ओ. डायर ने किया था. उसी जनरल डायर की 13 मार्च, 1934 को भारत के वीर सपूत ऊधमसिंह ने हत्या करके भारतीयों के खून का बदला लिया था. 

सौ बरस बीते, पर उन लम्हों की आग आज भी धू -धू कर धधकती है, जब बेदर्द अंग्रेज हुक्मरानों ने तीन तरफ मकानों से घिरे एक मैदान में हिंदुस्तानियों की निहत्थी भीड़ को गोलियों से भून डाला था. बाहर जाने का एक संकरा सा रास्ता और ऐसे में जान बचाने के लिए कोई दीवार फांद गया, कोई पेड़ के पीछे छिप गया और जब बचने की कोई सूरत न नजर आयी तो गोद में दुधमुंहे बच्चे लिए माएं एक कुएं में कूद गयी. 

13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग में रोलेट एक्ट के विरोध में, ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियों और पंजाब के दो लोकप्रिय नेता डॉक्टर सत्यपाल एवं सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी के विरोध में हजारों की भीड़ जमा थी. उस दिन बैसाखी होने के कारण बहुत से लोग अपने बच्चों को मेला दिखाने लाये थे. वह रविवार का दिन था और शाम को करीब साढ़े चार बजे लगभग 20,000 व्यक्ति इकट्ठा थे. अंग्रेज सरकार इस सभा को अवैधानिक घोषित कर चुकी थी. बाग के एक कोने में पड़े पत्थरों के ढेर पर खड़े होकर लोग भाषण दे रहे थे. तभी बाग में आने के एकमात्र तंग रास्ते से 90 ब्रिटिश सैनिक भीतर घुस आये और 10-15 मिनट में 1650 राउंड गोलियां चला दी. शहीदों के आंकड़े सरकारी अनुमानों के अनुसार, लगभग 400 लोग मारे गये और 1200 के लगभग घायल हुए, जिन्हें कोई चिकित्सा सुविधा नहीं दी गयी. 

अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है. जलियांवाला बाग में 388 शहीदों की सूची है. ब्रिटिश शासन के अभिलेख में इस घटना में 200 लोगों के घायल, 379 लोगों के शहीद होने की बात स्वीकार की गयी थी, जिसमें से 337 पुरुष, 41 नाबालिग किशोर लड़के और एक 6 सप्ताह का बच्चा भी था. अनाधिकारिक आंकड़ों में कहा जाता है कि 1000 से अधिक लोग मारे गए थे और लगभग 2000 से भी अधिक घायल हो गये थे. दुनियाभर के मुल्कों में आजादी के लिए लोगों ने कुर्बानियां दी हैं, लेकिन यह अपनी तरह की पहली घटना है, जिसमें एक ही स्थान पर एक साथ इतने लोगा शहीद हुए हों. 

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